Saturday, August 1, 2009
चैनल,जातिवाद और राजनीति ...
चैनल,जातिवाद और राजनीति ...
न्यूज चैनल और स्क्रीन पर न्यूज पढ़ती एंकर । जिसे देखकर अधिकतर लड़की और लड़कियां । पत्रकार बननें का सपना देखने लगती और लगता है । मेरी एक एक महिला मित्र हैं । पेशे से सरकारी नौकरी में हैं । अभी एक विश्वविद्यालय से पत्रकारिता का कोर्स किया हैं । साथ में एंकर का भी कोर्स किया हैं । जो भी लोग किसी कोर्स करतें हैं उन्हें ये तो पता होगा कि प्लेसमेंट का क्या होता हैं । और इसको लेके कइसे कइसे सब्जबाग दिखाया जाता हैं । खैर जाने दीजिए फिलहाल अभी मैं अपनें महिला मित्र की बात करता हूं । अगर वो इसको पढ़ेगी तो मुझे जरूर तरह तरह के उपनाम से नवाजनें से नहीं चूकेंगीं । मैडम को लगता हैं कि एंकर बनना बहुत आसान हैं । और खालीये अपनें टैलेंट के बलबूते ही वह अपनें मुकाम तक पहुंच जाएगी । अब उसको कौन समझाये । ये कहानी केवल इस महिला की ही नहीं । परतुं हर उस शख्स की हैं जो आसमान में उड़ते हैं । कमोबेश यही हालत मेरे रूम में रहनें वाली साथीयों की भी हैं । उनकों भी ऐसा ही लगता हैं । खैर वो किसी और फील्ड के हैं । इसलिए वे क्या जानें कि हम दीवानों की क्या हालत हैं । ई हॉ आके काम करिहन त पता चली । कि का बा मीडिया ।
अगर आप अपना रोना किसे के सामनें रोएं तो वो आपको यहीं समझेगां कि आप बहुत बड़ें सीएचयूटीआईए हैं । लेकिन क्या कीजिएगा । आदमी हमेशा अपनें को काबिल और दूसरों को ऊपर लिखा हुआ समझता हैं ।
चैनल से लोगों को दिखनें वाले सपनें कितनें क्रूर होते हैं । ये तो वहीं बता सकता हैं जिसनें इसको देखा और पूरा करनें कि कोशिश की । और नहीं कर पाया । मैनें अक्सर लोगों से सुना हैं और जनाब कुछ का तो यहॉ तक कहना हैं । आपकें अंदर दम नहीं हैं । नहीं तो आप भी आज अच्छे चैनल में होतें । उनकी बात सुनकर हंसी भी आती हैं । और अपनें ऊपर ग्लानि भी होती हैं । लेकिन क्या करू कहा गया हैं कि समय बहुत बलवान होता हैं । समय ही बताएगा कि क्या क्या स्थिति हैं ।
सपना देखनें में मेरे जानकारी के मोताबिक कहीं भी रोक नहीं हैं । और बंद आखें क्या खुली आखों से भी सपना देखना चाहिए । लेकिन इसे पूरा करनें वाला ही जानता हैं कि क्या कठिन डगर हैं पनघट की । हम चैनल वाले भलें लोगों को ज्ञान बाटते फिरे लेकिन खुद कितनें ज्ञानी हैं । ये तो ई हॉ आने के बादे पता चलता हैं । दुनिया भर में फैले अंधविश्वास को आड़े हाथों लेतें है मगर खुद ही इस समस्या से कितनें ग्रसित हैं । ये किसी स्ट्रगलर से पूछिये तो बताएगा । आपस में प्रेम सौहार्द की बात करते हैं । मगर खुद कितना रखते हैं । ये यहॉ काम करनें वालों से ही जानिए तो जादे नीक रहेगा । खैर जाने दीजिए आपनें तो वह गाना सुना ही होगा कि " कुछ तो लोग कहेगें लोगों का काम हैं कहना "। वहीं दूसरी तरफ मैं आपको बता दू मैं यहॉ कि वस्तुस्थिति से अवगत कराना चाहता हूं ना कि किसी को डराना या भ्रमित करना चाहता हूं ।
अंतिम में दुष्यंत कुमार की वो पंक्ति दोहराना चाहूंगा जो नीचे हैं ....
हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं ,
मेरा कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए ।
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