अभी कुछ दिन पहले राष्ट्रीय खेल दिवस मनाया गया । लेकिन क्या हम लोग जानते हैं कि हमारा राष्ट्रीय खेल हॉकी हैं । जाहिर हैं हम में से बहुत लोग जानते होगें । और हम में से बहुत लोग नहीं जानते होगें । आईये सुनते हैं हॉकी कहानी हॉकी की जुबानी .......
मैं हाकी हूं । मुझे भारत के राष्ट्रीय खेल के नाम से पहचाना जाना जाता हैं । बाकी मैं आज अपना पहचान खो चुका हूं । मैं तो बस अब कंपटीशन में पूछे जाने वाले सवाल तक सिमट के रह गया हूं । मेरी ये हालत देखके मेरे बेटे सब की आत्मा कराह रही होगी । लेकिन आज मैं एकदम बेबस हो गया हूं । एक समय था जब ओलंपिक में मेरे बेटे ध्यान चंद और उनके भाई रूपसिंह के खेल से दुनिया भर में मेरी तूती बोलती थी । और मेरे बेटे ध्यान चंद को हॉकी का जादूगर कहा जाता था । वहीं जब मैं इतिहास का पिछिला पन्ना पलटता हूं तो देखिये ओलंपिक में छे गोल्ड मेडल जीते थे । खाली 1980 तक कुल 8 गोल्ड जीत के मेरा नाम रौशन किया था । उसके बाद मेरा स्वास्थ बिगड़ता चला गया । और अब मुझे ना तो कोई पहचानता हैं ना ही कोई जानता हैं । दुर्दशा यहां तक पहुंच गयी हैं कि देश 2008 के पेइचिंग ओलिंपिक में क्वालिफाई भी नही कर सका । दुनियाभर में हॉकी का स्वरूप बदल गया मगर मेरा हालत जस का तस बना हुआ हैं । इंटरनेशनल हॉकी फेडरेशन में मेरे अधिकारी सब एकदम्मे निकम्मे साबित हुआ । फील्ड में बदलाव भी मेरे हालत बिगाड़नें में कोई कसर नहीं छोड़ा । बाकी कसर हॉकी के फ्लॉप मार्केटिंग ने पूरा किया । जिससे अभी भी राष्ट्रीय खेल होने के बावजूद मेरे को स्पॉन्सर का हमेशा टोटा रहता हैं । वहीं पर मेरे दोस्त क्रिकेट मुझसे काफी आगे निकला गया । बाकी आज भी मैं अपने हालत सुधरने की बाट जोह रहा हूं । कब सुधरेगी मेरी हालत । फिर कब बहुरेगा मेरा दिन । फिर कब लौटेगा मेरा पुराना पहचान । कब फिर मैं निकलूगां किताब के पन्ना से बाहर । और दुबारा फिर से कब बजेगा मेरे नाम का डंका ।
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