Friday, October 23, 2009

क्या हम इतना गिर गए हैं...

आखिरकार आज फिर याद आए गए अशफाक उल्लाह। गाहे बगाहे ही सही याद तो आए। ये क्या कम हैं। ज्ञात हो कि 22 अक्टूबर को अशफाक का जन्म दिन था । सन 1900 में यूपी के एक गांव में उनका जन्म हुआ था। जन्म दिन था तो कौन उसमें क्या करें । यहां तक कि छोटी छोटी बात पर चिलपों मचाने वाले न्यूज चैनल भी इस मुद्दे पर चुप थे । एक नहीं सारे चैनल वाले ही सुबह से विधानसभा के परिणाम में जो व्यस्त थे। इसलिए किसी को सुध ही नहीं रहा होगा। क्यो सही कहा हैं ना ।
लेकिन जरा सोचिए क्या हम सब इतने स्वार्थी हो गए हैं कि इस महान क्रांतिकारी को भूल गए। शायद हां भी शायद ना भी । लेकिन जो हुआ सो हुआ । ये अक्षमनीय हैं । बिल्कुल भी नाकाबिले बर्दाश्त हैं । मैं भी पथभ्रष्ट भीड़ का हिस्सा हूं। जानता हूं पर जान के भी कुछ नहीं कर सकता हूं। इसमें अगर मुझे कोई फ्रस्टू बोले तो ठीक हैं । हां मैं ऐसा ही हूं । और अगर मैं ऐसा हू तो आप मेरा क्या कर लीजिएगा ।
अब जरा ध्यान कीजिए इस महान क्रातिंकारी का योगदान । काकोरी कांड तो आपको याद होगा । शायद आप लोग बिल्कुल भी नहीं भूले होगें। अगर भूल गए हैं तो शर्म हैं... आप पर और इस देश के तमाम जनता पर। जो आज मजे से अपनी जिन्दगी बिता रहे हैं। अगर ये कहा जाए कि उन्होंने हमारे कल के लिए अपना आज बर्बाद किया था । वे चाहते तो मजे से जिन्दगी बिता सकते थे । अरे भाई वे पढ़ने में कमजोर थोड़े ही ना थे । जब वो अपने एक कमीने रिश्तेदार के दोगलई से अंग्रेजों के हाथ में आए थे । तब वे भारत में आजादी के मिशन को धन की होने वाली कमी से दूर करने के लिए विदेश जा रहे थे।
शर्म आए जहां पर ऐसे रिश्तेदार मौजूद हो जो किसी को नेक काम करने से रोकें ।
खैर क्या कीजिएगा ई हां का सिस्टम ही ऐसा हैं।
आखिर कार अशफाक उल्लाह को इस कृत्घन राष्ट्र के इस अदने से आदमी का सलाम...

Wednesday, October 14, 2009

मिलावटी दुनिया में हम...

मिलावटी दुनिया में हम...
दिवाली आने को हैं । औऱ अच्छे अच्छे लोगों का दिवाला निकलने को तैयार हैं। एक तरफ महंगाई और दूसरी तरफ मिलावट दोनों ने आम आदमी का जीना मुहाल कर दिया हैं। लेकिन क्या करे दुनिया में आए हैं तो जीना ही पड़ेगा। आज के इस मिलावटी उदारीकरण के दौर में आम आदमी की हालत बद से बदतर हो गयी हैं। पर क्या करें मजबूरी हैं । कर भी क्या सकते हैं । किसी ने कहा हैं जिन्दगी जीने के दो तरीके हैं । पहला जिम्मेदारी को समझे और इसे उठा के अपने अनूकूल माहौल में जीए। वहीं दूसरा तरीका इसके ठीक उलट हैं। दूसरे तरीके में जो हो रहा हैं उसको होनें दे,जैसा चल रहा हैं उसको चलने दे । यहीं हैं दूसरी जीने के नीति । जिसे हर आदमी अपनाना चाहता हैं और जीना चाहता हैं । खैर ये सही भी हैं । अगर हम इतिहास के पन्ने पर नजर दौड़ाए तो यहीं बात निकल कर सामने आती हैं कि सरवाइल ऑफ द फिटेस्ट । बहरहाल जीने का दूसरा तरीका आसान और सरल हैं। क्योकिं इस पद्धति में आप ज्यादा टेंशन नहीं लेते हैं। और हर हाल में जिन्दगी गुजार लेते हैं। लेकिन जिन्दगी जीने का जो पहला तरीका उसमें टेंशन भी हैं । और फिक्र भी। और तौ और पहली तरीके आपको समयानूकूल बदलाव करनें की गुजाइंश नही होती हैं क्योकिं आप खुद ही बदलना नहीं चाहते हैं।
आज के इस मिलावटी दौर में किसी चीज पर भरोसा करना खतरे खाली नहीं हैं। प्यार में मिलावट,खाने में मिलावट तो पहले से ही चला आ रहा हैं, यहां तक कि अब मां बाप में भी मिलावट देखन को मिल रहा है,पत्नी में मिलावट,खून में मिलावट(लखनऊ खून रैकेट एक सटीक उदाहरण हैं),पइसा में मिलावट, हर जगह मिलावट का ही जमाना हैं भाई। ऐसा इसलिए हैं क्योकिं हम ऐसे ही हैं । और ये ऐसे ही चलता रहेगा । क्योकि ऐसा हम चाहते हैं । वैसे भी समाज में हम आप जैसे ही लोग रहते हैं। मिलावटी जमाने शुद्ध सामान की बात ना करें । ऐसा ही हैं और भविष्य में ऐसा ही रहेगा.....

Tuesday, October 13, 2009

किशोर दा...

किशोर दा...
खइके पान बनारस वाला...चलते चलते मेरे ये गीत याद रखना...चला जाता हूं किसी के धुन में ... अगर किसी से पूछा जाए कि इन गीतों में क्या समानता हैं...तो आपका क्या जवाब होगा...जी हां बिल्कुल ठीक पहचाना कि इन सब गीतों को एक ही गायक ने गाया हैं...जी जनाब इनका नाम किशोर कुमार हैं...लगभग सब सुपरस्टार की आवाज बनने वाले किशोर दा का आज पुण्यतिथि हैं...बॉलीवुड के सरताज गायक किसी परिचय से महरूम नहीं हैं ...पर दुनिया की बानगी देखिए बहुत कमतरे लोग को ये याद होगा...खैर ये दुनिया ही ऐसा हैं...किशोर दा के बारे मैं इतना ही कहना चाहूंगा कि अगर उन्होनें अमिताभ के लिए गाया तो अमिताभ की आवाजा में रम गए...वहीं देव साहब के लिए गाया तो उनकी आवाज में रम गए...राजेश खन्ना के गाना गाया तो लगा कि काका खुद ही गाना गा रहें हैं...शायद ही कोई ऐसा गायक होगा जो बहुमुखी प्रतिभा का धनी हो...चाहे निर्देशन हो या फिर निर्माता...हर जगह किशोर दा नें हाथ आजमाया...और सफल हुए...यही नहीं दादा ने बेजोड़ अभिनय भी किया...आखिर कौन भूल सकता हैं पड़ोसन के मास्टर जी को अपने शिष्य को प्यार करना सिखलाता हैं...बहरहाल एक इंसान में अभिनय की क्षमता,गायकी में बेजोड़, निर्देशन भी अव्वल दर्जे का...इतनी सारी प्रतिभा के धनी किशोर दा वाकई में बिरले थे...उनके जैसा ना कोई था और ना ही कोई आएगा...
किशोर दा के पुण्यतिथि पर उनको भावभीनी श्रद्धाजंलि...

Monday, October 12, 2009

अमिताभ साहब और हम लोग...

अमिताभ साहब और हम लोग...
सदी के महानायक का आज 67 साल के हो गए । देश भर में हर जगह बिग बी के प्रशंसकों ने उनका जन्मदिन मनाया। दिन भर न्यूजरूम में एफटीपी पर एक से एक खबर देखने को मिला। वाकई ये अमिताभ साहब ही हैं ,जिन्हें लोगों नें भगवान बना दिया हैं । जहां तक मुझे लगता हैं । ना उन से पहले कोई ऐसा अभिनेता था ना होगा । जिसे लोग इताना प्यार और दुलार करेगें । शायद ही कोई ऐसा अभिनेता होगा जिसे लोग भगवान की तरह पूजेगें । शायद ही कोई ऐसा होगा जो पूरा बॉलीवुड का इतिहास ही बदल देगा। इतिहास गवाह हैं कि कैसे बच्चन साहब ने पूरे बॉलीवुड का दिशा ही बदल दिया हैं।
बहरहाल उनके करिश्मा को कोई मिलने पर ही जान सकता हैं । रूपहले पर्दा पर एंग्री यंग मैन लगने वाले बिग बी बहुत ही सौम्य और शांत हैं। ऐसा मुझे लगा हैं। देश भर के खुशनसीबों में से मैं भी एक शख्स हू जो अमिताभ साहब से रूबरू हुआ हैं। लखनऊ में तकरीबन पांच बरस पहले अमित सर एक कार्यक्रम में शिरकत करने आए थे। जहां मुझे उनसे बात करने और मिलने का सौभाग्य मुझे भी प्राप्त हुआ । वो 30 सेकेंड की कुशलक्षेम वाली बातचीत आज भी मुझे याद हैं।
उस पूरे कार्यक्रम जहां जया हँसती नजर आ रहीं थी । वहीं हमेशा की तरह अमिताभ बहुत शांत और गंभीर थे । मैं और मेरे कुछ पत्रकार साथी प्रेस दीर्घा में थे । कुछ देर बाद हम लोग भी उनके पास आ गए। फिर शुरू हुआ वो दौर जिसका इंतजार मेरे साथ मेरे हर साथी को था। उस समय हमारे भगवान या यूं कहे की सब कुछ वो ही थे । हम लोगों ने हर तरफ से उनको घेर लिया था । जिससे अमित जी तनीक भी असहज नहीं हुए। और मजेदार बात यह रहीं कि उनके सुरक्षा में मुस्तैद रहने वाले ब्लैक कैट ने भी हम लोगों को खुले सांड की तरह छोड़ दिया था । थोड़ी देर में जया जी भी वहां आ गयी । वहीं अमर जी पहले से वहां मौजूद थे । उनके साथ और भी लोग थे । बातचीत बहुत मजेदार ढ़ंग से हो रही थी । अमित जी पर हम लोग लगातार सवालों का बंब फेंक रहे थे । और वे हर सवालों के बंब को ऐसे कैच कर रहे थे । जैसे मानों फूल हो। जिंदगी के बमुश्किल दस मिनट के ये क्षण की याद आज लगभग पांच साल बीतने के बाद भी मेरे जेहन में हैं। बातचीत की सिलसिला चल ही रहा था कि अमर सिंह बोले के अब हम लोगों को आराम करने के लिए चलना चाहिए क्योकिं सुबह निकलना भी हैं। मैनें अपनी घड़ी पर नजर डाली तो सुबह के 2 बजे चुके थे । रात की बेला सुबह के बेले में जाने को आतुर थी ।
इसके बाद बिग बी हमलोगों से दोबारा मिलने का वादा करके चल दिए । अपने मित्र के शहर में । वहीं बिग बी हमलोगों को मुंबई का न्यौता देना भी नहीं भूलें। जिसे हम लोगों ने ऐसे स्वीकार किया जैसे अभी हीं दौड़ कर हम लोग मुंबई पहुंच जाएगें। बहरहाल क्षण भर की वो मुलाकात आज भी तरोताजा हैं।
सदी के महानायक को उनके 67 वें जन्मदिन पर हार्दिक बधाई। भगवान करे वे नित नये आयाम को छुए...

Tuesday, September 29, 2009

बेचारे स्ट्रिंगरो का दर्द...

बेचारे स्ट्रिंगरो का दर्द...
अभी कुछ दिन पूर्व मेरे एक लेख को पढ़के मेरे मित्र का फोन आया । उन्होंने मेरे लेख की तो तारीफ की ही साथ ही साथ मुझे स्ट्रिंगरो पर कुछ लिखने को कहा । लगभग दस दिन बीत जाने के बाद मुझे आज इसके लिए समय मिला पाया हैं । क्या करू ऑफिस की किचकिच और नाइट शिफ्ट होने के कारण समय बहुत कम मिल पा रहा हैं । आज थोड़ा बहुत समय मिला हैं तो सोचा कुछ लिख दूं। इसलिए लिखने बैठ गया । सबसे पहले तो मैं उनसे माफी चाहूंगा । फिर कुछ लिखना चाहूगां ।
अगर आप किसी आम आदमी से पूछे कि न्यूज़ चैनल की रीढ़ कौन होता हैं । तो जनाब एक ही उत्तर मिलेगा कि पर्दे पर न्यूज़ पढ़ने वाली एंकर । और ज्ञान झाड़ने वाले रिपोर्टर । ये ठीक भी हैं । क्योकिं अगर कोई चैनल देखता हैं तो उसमें एंकर का भी अहम रोल होता हैं । वहीं दूसरी तरफ अगर आप किसी न्यूज चैनल वाले से पूछेंगे तो निश्चित तौर पर अधिकतर लोग स्ट्रिंगर को चैनल की रीढ़ बताएगें । और ये सहीं भी हैं। बेचारे यही बिना पैसा के दिन रात एक कर के न्यूज़ भेजते हैं । कुछ चैनल तो इन्हीं स्ट्रिंगर के सहारे चल रहे हैं। मै यहां नाम नहीं लेना चाहूगां । आगे बढ़ने से पहले समझा जाए कि आखिर स्ट्रिंगर का फंडा क्य़ा हैं और इनका अहम रोल क्यों होता हैं । और कौन होते हैं ये लोग ।
स्ट्रिंगर किसी भी न्यूज़ चैनल के संवाददाता ही होते हैं । और ठीक वैसे ही काम करते हैं । मोटे तौर पर समझा जाए तो । बस कमी होती हैं कि वे चैनल के पे रोल पर नहीं होते । यानी उनकी सैलरी तय नही होती हैं । केवल उनको अपने काम के अनुसार पैसा दिया जाता हैं । मसलन न्यूज भेजने के लिए इतना पैसा । फोनो के लिए इतना पैसा । वगैरह वगैरह । साफ हैं जितना काम उतना दाम ।
लेकिन इनकी हालत बहुत दयनीय होती हैं । जाहिर हैं इनको महीना बीत जाने के बाद भी पैसा के लिए तरसना पड़ता हैं । कई बार तो एक महीना क्या ना जाने कितने महीने इंतजार करना पड़ता हैं । इसका हिसाब तभी मिल पाता हैं । जब पैसा आता हैं । चैनल जितना स्ट्रिंगर को जितना दोहन कर पाता हैं । उतना करने का कोशिश करता हैं । बाजार में ऐसे तमाम चैनल हैं जिसमें काम कर रहे स्ट्रिंगर को महीनों से पैसा नही मिला हैं । लेकिन क्या कर सकते हैं । बाजार कि पॉलिसी एक दम साफ हैं "SURVIVAL OF THE FITTEST सरवाइवल ऑफ द फिटेस्ट " । ये फंडा खाली मीडिया कंपनी ही नहीं हर जगह हर कंपनी में लागू होता हैं ।
स्ट्रिंगर के दर्द को खाली स्ट्रिंगर ही समझ सकता हैं । दिन रात मेहनत कर के अगर महीना के आखिर में पैसा ना मिले तो उस समय की तकलीफ और मनोदशा केवल वो आदमी ही बता सकता हैं । जो कि भुक्तभोगी हैं । लेकिन हमेशा ये रीत रहीं हैं कि कमजोरों का ही शोषण किया जाता हैं । क्या आपने सुना हैं कि किसी ताकतवर का शोषण हुआ हैं । मेर हिसाब से बिल्कुल भी नहीं । मैं बस इतना ही कहूंगा इन स्ट्रिंगर पर चैनल को ध्यान देना चाहिए जिससे कि कम से कम ये चैन की सांस ले सके । और समय पर वेतन मिल सके जिससे इनको भी काम करने में मजा आए ना कि शोषण होने से किसी गलत रास्ता को अख्तियार कर लें । और खराब मनोदशा के कारण कोई गलत न्यूज़ ना भेज दें । जिससे चैनल को न्यूज़ भी उत्तम दर्जे की मिले ।

Monday, September 21, 2009

वो यादें जो भूलती नहीं हैं...

अभी ऑफिस जाने के लिए घर से निकला तो कुछ यादें जो कि तकरीबन 20 साल पुरानी हैं अनायास ही ताजा हो गयी ... ये यादें भी कमाल की होती हैं जो अक्सर याद आती हैं ...तभी तो इसको यादे बोला जाता हैं ... बहरहाल यादों का काम हैं आना सो आ गयी... दरअसल मेरे घर के पास एक स्टेडियम हैं ... आपको बता दू कि नौएडा में खाली एक स्टेडियम हैं जो सेक्टर 21 में ...ठीक उसके सामने मेरा घर हैं...बहरहाल चूकिं दुर्गापूजा चल रहा हैं...इसलिए सुनसान रहने वाला ये स्टेडियम में आज कल रौनक रहती हैं...आजकल दुर्गा पूजा के उपल्क्षय में रामलीला का आयोजन किया जा रहा हैं...
खैर पुराने मुद्दे पर वापस लौटते हैं...मेरे घर के पास चौडा मोड़ नामक एक चौराहा हैं...जिसके पास आकर मैनें देखा कि एक सज्जन जिनकी उम्र लगभग साठ साल से ज्यादा होगी...एक छोटे से बच्चे जिसकी उम्र पांच छव बरस होगा...उनके साथ मेला देखने आया था...वो लड़का मेला देखने आया था इस पर मैं इसलिए कंफीडेंट क्योकिं उस बच्चे के हाथ में गुब्बारा था...जिसे देखकर मैं क्या हर कोई कह सकता हैं कि दोनों मेला देखने आये थे...चूकिं त्योहार का सीजन हैं और बच्चों में इसको लेकर खासा कौतूहल रहता हैं...सो चल पड़े अपने प्यारे दादा जी के साथ मेला घूमने...और दादा जी भी अपने दुलारे मुन्ना को निकल पड़े लेके रावण को दिखाने के लिए...
हाथ में गुब्बारा और दादा जी का साथ सीधे मुझे ले गया अपने बचपन के दिनों में जब मैं भी अपने बाबा के साथ दुर्गाघर ( हमारे गांव का मंदिर जहां मेला लगता हैं ) हाथ पकड़कर घूमने जाता था...खैर मैं जानता हूं वो दिन अब मेरे लिए खाली ख्वाब हैं...और मैं ये भी जानता हूं कि ख्वाब कभी पूरा नहीं होता हैं...इसी याद को समर्पित हैं ये कुछ पंक्ति..........

वो यादे जिसे मैं बचपन में ही गांव में छोड़ आया था...
वो यादे जो मेरी जिन्दगी का सबसे उत्तम समय था ...
वो यादे जिसे दोबारा जीने की चाह मुझे हमेशा रहती हैं ...
वो यादे जो मैं कभी दोबारा नहीं जी सकता हूं...
वो यादे जिसे याद करके मेरी आंखे आज भी नम हो जाती हैं ...
वो यादे जो शायद किसी के पास हो सहेजने के लिए...
वो यादे जिसे याद रखने के अलावा कोई भी विकल्प नही हैं आज ...
वो यादे जो मेरे मरने के बाद भी नही मिट सकती हैं ...
वो यादे आज अनायास ही याद आ गयी हैं मुझे...

Saturday, September 19, 2009

शशि थरूर ही क्यों ?

आज रात की शिफ्ट करने के बाद जब घर पहुंचा तो मन में ख्याल आया कि क्या शशि थरूर के मुद्दे को इतना उछालना सही हैं...अगले ही पल सोचा नही ये बिल्कुल सही है...आखिर ये मसला देश के करोड़ों हम जैसे भेड़ बकरी से जुड़ा हैं...अगर अपनी बात करू तो मैं अभी तक बमुश्किल गरीब रथ में भी सफर नहीं किया हैं...मेरे जैसे अदने से पत्रकार के लिए तो एसी में सफर करना भी सौभाग्य की बात हैं...और विमान में सफर करना एक दिवास्वप्न हैं...लेकिन शशि सर ने तो अपनी बात का इजहार किय़ा है...उन लोगों का क्या जो बिना बोले सेकेंड क्लास वालो को हीन भावना से देखते हैं...अगर आप गौर करे तो चाहे बस हो या फिर ट्रेन या फिर सड़क ही क्यो ना हो...हर जगह हम जैसे लोगों को मवेशी ही बनना पड़ता हैं...खैर य़े कहानी नयी नहीं हैं...परम पूज्यनीय बापू का किस्सा तो आप लोग को पता ही होगा...कि कैसे उनको ट्रेन से बाहर फेंक दिया गया था...ये तो मात्र एक उदाहरण है...वही आप गौर कीजिए तो सड़क पर कार सवार को वर्दी वाले गुंडे नही रोकते हैं...मगर दुपहिया सवार को तुरंत रोक दिया जाता हैं...क्या आपने सोचा हैं कि ऐसा क्यूं हैं...क्यों हम जैसे लोगों को ही चूसा जाता हैं...ऐसे में मुझे एक अर्थशास्त्री की बात याद आती हैं कि हमेशा शक्तिशाली लोग ही जीतते हैं...अंग्रेजी में मैनेजमेंट की कक्षा में अक्सर पढ़ाया जाता हैं कि "SURVIVAL OF THE FITTEST"...मैने भी इसको मैनेजमेंट की कक्षा में खूब पढ़ा था...और इसका अब प्रायोगिक रूप से इस्तेमाल भी कर रहा हूं...
बहरहाल पुराने मुद्दे पर वापस लौटते ही हैं...हम खाली शशि सर की ही क्यों बात कर रहे हैं...और किसी नेता का क्यों नही...फारूख अब्दुल्ला,गुलाम नबी,लालू जी, रामविलास बाबू, ऐसे ना जाने कितने नेता हैं जो इस फेहरिस्त में शामिल हैं...अफसरशाह लोग की बात तो आप छोड़ हीं दे...उनको तो इसी खातिर जाना जाता हैं...उन पर क्यो नही हगामा किया जाता हैं...क्यो नही उनपर कोई कार्रवाई की जाती हैं...इसका उत्तर ना तो आपके पास हैं नहीं मेरे पास...
इसी जवाब के चाह में...
दिलीप

Thursday, September 17, 2009

शशि जी प्जीज़ माइंड इट...


देश के सत्तारूढ़ पार्टी के नेता सब हमेशा किसी ना किसी काम को लेके चर्चा में रहना पंसद करते हैं...चाहे वो कोई मामूली नेता हो या फिर सरकार के कोई मंत्री साहब ही क्यूं ना हो...आपने अपने पूर्व गृह मंत्री शिवराज पाटिल को तो नही भूला हैं... जो देश के राजधानी दिल्ली में हुए आतंकवादी हमला के दौरान पोजीशन लेने के बजाए अपने चार पांच सूट बदलने में व्यस्त दिख रहे थे...और तो और जितने जगह गए नये सूट में...ऐसा लगा मानों वे किसी मय्यत में नही किसी पार्टी में शामिल हो ने जा रहे हो...इस विवाद में अब नया नाम जुड़ गया हैं विदेश राज्य मंत्री शशि थरूर साहब का...जी हॉ अब आप जानले कि आप विदेश राज्य मंत्री शाशि थरूर के मुताबिक भेड़ बकरी हैं...ये कहना है स्टीफेनियन शशि साहब का...साहब के मुताबिक इकॉनामी क्लास में सफर करने वाला व्यक्ति भेड़ बकरी होता हैं...मंत्री जी ने ये बात एक नेटवर्किंग साइट ट्विटर पर कहा हैं...कांग्रेस का हाथ आम आदमी के साथ का नारा देने वाली कांग्रेस पार्टी के नेता सब आम आदमी को क्या समझते हैं ये अब कहने का बात नही हैं...ये अलग बात हैं कि आम आदमी का साथ पाकर सत्तारूढ़ हुई कांग्रेस पार्टी के सूट बूट वाले ये नेता सब को अब कौन समझाए कि ये देश आम आदमी यानी भेड़ बकरी का हैं...ये तो वही बात हो गयी कि एक तो करेला ऊपर से नीम चढ़ाल ... गौरतलब है कि शशि थरूर इससे पहले सरकारी बंगला मिलने में देरी होने पर सरकारी खर्चा में फाइव स्टार में रह रहे थे...बाकी इस मुद्दा को मीडिया में गरमाने के बाद सरकार को सफाई देना पड़ा था...खैर इसमें मंत्री जी का कोई गलती नही हैं ...शुरू से ही अंग्रेजी परिवेश में रहने वाले ये मंत्री जी को आम आदमी से कितना सरोकार है...ये किसो को बताने वाला बात नही हैं... साहब शुरू से अंग्रेजी स्कूल में पढ़े...फिर देश के नाज स्टीफेंस में...स्टीफेनियन को कितना आम आदमी से सरोकार रहता हैं...ये भी कोई कहने वाला बात हैं भाई...मेरे इस बात को सुनकर मेरे स्टीफेनियन साथी जरूर कह रहे होगे कि झा जी पगला गए हैं...लेकिन मेरे पास हंसने के अलावा कुछ भी नही हैं...स्टीफेनियन मंत्री जी के योग्यता पर पूरे देश को कोई शक नही हैं...यूएन में देश का आवाज बुलंद करने में इनका खासा योगदान रहा हैं...बाकी इकॉनामी क्लास के भेड़ बकरी के क्लास कहना जरूर शर्मनाक हैं...और मंत्री जी को ये कौन समझाए कि उनका सरकार आम आदमी के साथ से बना हैं... ना कि बिजनेस क्लास में उड़ने वाले लोगों से...जिनका साथ छूटने पर सरकार के लिए खासा दिक्कत हो सकता हैं...इसका उदाहरण पहले भी पार्टी देख चुका है...सो मिस्टर थरूर प्लीज माइंड योर लैगवेज नेक्सट टाईम...अथरवाइज मैडम वील स्पीक टू यू... थैक्स ए लॉट...

Friday, September 11, 2009

भिखारी भैया


हम सबके भिखारी भैया ...........
ट्रैफिक सिग्नल पर खड़ा होते ही...मिलता हैं एक शख्स...मंदिर जाते समय... फिर मिलता हैं वो शख्स... यहॉ तक कि स्कूल ,कॉलेज जाते समय भी मिलता हैं वो शख्स ...आखिर कौन हैं वो जो हर जगह मिल जाता हैं...आखिर कौन हैं वो जिससे मिलना लोग पंसद नहीं करते हैं ...और देख कर अपना रास्ता बदल लेते हैं...स्कूल हो या फिर कॉलेज... मंदिर हो या ट्रैफिक सिग्नल... या फिर कोई बाजार हो... रेलवे स्टेशन हो या फिर एयर पोर्ट... हर जगह रहता हैं ये शख्स...आप इनको अच्छी तरह से पहचानते हैं... आपसे इनकी रोज मुलाकात होती हैं...आप इस शख्स से मिलने पर इससे पीछा छुड़ाते हैं... पर ये पीछा नहीं छो़ड़ता हैं...अब जरा मिलिए ये शख्स से...ये जनाब को आप भिखारी के नाम से जानते हैं...भीख मागनें की समस्या एक बड़ा विकराल रूप ले रहा हैं... एक आकड़ा के मुताबिक देश भर में अभी कुल आठ लाख भिखारी हैं...खाली देश के राजधानी दिल्ली में ही ये आकड़ा लगभग साठ हजार के आस पास हैं...खैर ये तो था आकड़े की बात...शायद आपको मालूम हो कि भीख मांगना एक कारोबार का रूप ले रहा हैं...राजधानी दिल्ली और मुम्बई में तो ना जाने कितने गिरोह भीख मांगने के पेशा से जुड़े हुए हैं... अगर कमाने के आकड़ा पर गौर किया जाए तो दिल्ली में एक भिखारी रोजाना एक सौ से जादे रूपया का कमाई करता हैं ...औऱ तो और जनाब भिखारी लोग के घर के लोग भी ये ही काम करते हैं... आखिर पूरा घर को चलाने के लिए एक ही आदमी की कमाई थोड़े ही पूरा होता हैं ... भीख मांगने में खाली अनपढ़ ही नहीं बल्कि पढ़े-लिखे लोग सब भी शामिल है...एक सर्वेक्षण के मुताबिक बहुत भिखारी लगातार बढ़ रहे बेरोजगारी से आजिज आकर भीख मांगने का रास्ता चुन लेते है...आखिर चुने भी तो काहे ना...इस धंधे में पैसा का कमी थोड़े ना हैं... बस आदमी को भीख मांगना आना चाहिए... आकड़ा पर गौर करे तो बहुत भिखारी लोग रोजाना पॉच सौ से ज्यादा का कमाई करते हैं ... यानी पूरा महीना में तकरीबन पंद्रह हजार ... यानी एक सरकारी कर्मचारी के कमाई के बराबर ... तो भैया काहे नहीं लोग भिखारी बनेगें ... एक अनुमान के मुताबिक देश में भीख मांगने का कारोबार लगभग दो सौ करोड़ से ज्यादे का हैं ... इतने बड़े पैमाने पर भीख मांगने के कारोबार उभरने का सबसे बड़ा कारण बढ़ रही बेकारी हैं...और इस पेशे में बढ़ रहा पैसा हैं... बाकी देश के कानून के मुताबिक भीँख मांगना एक बहुत बड़ा अपराध हैं...जिसमें पकड़ाने पर सजा का प्रावधान किया गया हैं...लेकिन फिर भी ये धंधा कारोबार का रंग ले रहा हैं...और बदस्तूर बढ़ रहा हैं इसका जाल...

Monday, August 31, 2009

मैं हाकी हूं ....

अभी कुछ दिन पहले राष्ट्रीय खेल दिवस मनाया गया । लेकिन क्या हम लोग जानते हैं कि हमारा राष्ट्रीय खेल हॉकी हैं । जाहिर हैं हम में से बहुत लोग जानते होगें । और हम में से बहुत लोग नहीं जानते होगें । आईये सुनते हैं हॉकी कहानी हॉकी की जुबानी .......
मैं हाकी हूं । मुझे भारत के राष्ट्रीय खेल के नाम से पहचाना जाना जाता हैं । बाकी मैं आज अपना पहचान खो चुका हूं । मैं तो बस अब कंपटीशन में पूछे जाने वाले सवाल तक सिमट के रह गया हूं । मेरी ये हालत देखके मेरे बेटे सब की आत्मा कराह रही होगी । लेकिन आज मैं एकदम बेबस हो गया हूं । एक समय था जब ओलंपिक में मेरे बेटे ध्यान चंद और उनके भाई रूपसिंह के खेल से दुनिया भर में मेरी तूती बोलती थी । और मेरे बेटे ध्यान चंद को हॉकी का जादूगर कहा जाता था । वहीं जब मैं इतिहास का पिछिला पन्ना पलटता हूं तो देखिये ओलंपिक में छे गोल्ड मेडल जीते थे । खाली 1980 तक कुल 8 गोल्ड जीत के मेरा नाम रौशन किया था । उसके बाद मेरा स्वास्थ बिगड़ता चला गया । और अब मुझे ना तो कोई पहचानता हैं ना ही कोई जानता हैं । दुर्दशा यहां तक पहुंच गयी हैं कि देश 2008 के पेइचिंग ओलिंपिक में क्वालिफाई भी नही कर सका । दुनियाभर में हॉकी का स्वरूप बदल गया मगर मेरा हालत जस का तस बना हुआ हैं । इंटरनेशनल हॉकी फेडरेशन में मेरे अधिकारी सब एकदम्मे निकम्मे साबित हुआ । फील्ड में बदलाव भी मेरे हालत बिगाड़नें में कोई कसर नहीं छोड़ा । बाकी कसर हॉकी के फ्लॉप मार्केटिंग ने पूरा किया । जिससे अभी भी राष्ट्रीय खेल होने के बावजूद मेरे को स्पॉन्सर का हमेशा टोटा रहता हैं । वहीं पर मेरे दोस्त क्रिकेट मुझसे काफी आगे निकला गया । बाकी आज भी मैं अपने हालत सुधरने की बाट जोह रहा हूं । कब सुधरेगी मेरी हालत । फिर कब बहुरेगा मेरा दिन । फिर कब लौटेगा मेरा पुराना पहचान । कब फिर मैं निकलूगां किताब के पन्ना से बाहर । और दुबारा फिर से कब बजेगा मेरे नाम का डंका ।

हरजाई बिजली...

हरजाई बिजली...
मिसेज शर्मा अपना फेवरेट सीरियल नहीं देख पा रही हैं ... तो बिट्टू बाबा को वीडियो गेम खेलनें में दिक्कत हो रहा हैं ... गांव के कलावती के घर में भी अंधेरा हैं ... तो पप्पू भैया समाचार नहीं सुन पा रहें हैं ...बब्लू को अपना होमवर्क करना हैं ... नहीं तो कल स्कूल में मैडम पिटाई करेगीं ... जिससे बब्लू बाबू मोमबत्ती में ही पढ़के अपने आखं पर जोर लगा रहे हैं ... गांव के कलावती से बड़े शहर में रहनें वाली मिसेज शर्मा तक ... पप्पू भइया से लेके बब्लू तक ... सब के दुख का कारण एक ही हैं ... बिजली ... ये बिजली इतना हरजाई हो गयी हैं कि सबका मिजाज पस्त कर दिया हैं ... किसे के घर को अंधेरा कर दिया हैं ... तो किसी को सास बहू की खबर नहीं मिल पा रही हैं ... हरजाई बिजली इतना रूला रही हैं कि लोग अपने घर को छोड़ के रोड रानी के शरण में आ गए हैं ... जी हॉ हम अभी फिल्मी बिजली का बात नहीं कर रहे हैं ... हम बात कर रहे हैं देश भर में बढ़ रहे बिजली संकट के ... गौरतलब है कि पूरे देश में हरजाई बिजली अपना कहर बरपा रहीं हैं ... जिससे आम आदमी का जिन्दगी बेहाल हो गया हैं ... देश के राजधानी में दिलवाले लोगों का भी हालत पातर हो गया हैं ... तो मुंबई के पैसा वाले लोग का भी हालत किसे से बढ़िया नहीं हैं ... एक तरफ गर्मी पसीना निकालने में कोई कसर नहीं छोड़ रहीं हैं ... तो बिजली इसको रोकने में हाथ खड़ा कर लिया हैं ... हरजाई बिजली ने सबको बेबस बना दिया हैं ... बिजली कटौती से जहां उद्योग जगत के छुक छुक गाड़ी रूक गयी हैं ... वहीं पैसा वाला लोगो का भी हालत कोई बढ़िया नहीं हैं ... हर जगह खाली एक हीं हल्ला हैं ... हरजाई बिजली कब वफा करेगी ...

Monday, August 24, 2009

माइ नेम इज नॉट खान


माइ नेम इज नॉट खान
जनाब ... आप सभी लोग को तो पता ही होगा हमारे चहेते ,देश के दुलारे शाहरूख खान ( जो अपने आपको किंग खान कहलवाना ज्यादा पंसद करते हैं ) को अभी कुछ दिन पहलें ही दुनिया के सबसे ताकतवर माने जाने वाले देश में अमरीका में बुरी तरह जलील किया गया था । लेकिन इस कहानी का ये एक पहलू हैं । जो हम सभी को पता हैं । इस कहानी का दूसरा पहलू क्या हैं । ये भी कुछ प्रमुख चैनल पर प्रसारित किया गया था । यहॉ नाम लेना श्रेयस्कर नहीं हैं । कि वे कौन से चैनल हैं ।
शाहरूख मुआफ कीजिएगा किंग खान अपनें दिए जा रहें एक चैनल के फोनो पर बार बार कह रहे थे कि माइ नेम इज खान । ये उन्होनें एक बार नहीं बल्कि बार बार कहा । और इसको पूरे मीडिया के साथ साथ देशवासियों नें भी सुना । इसलिए कुछ हद तक इस बारे में फैसला आप पर छोड़ता हूं । खैर जाने दीजिए मेरे कहनें से कुछ नही होगा । आप वहीं करेंगे जो आपको मन करेगा । बहरहाल मैं यह समझ नहीं पाया कि वो क्या बोल रहें हैं । अपना नाम बता रहें हैं या फिर अपनें किसी फिल्म का प्रमोशन करे रहें हैं । थोड़ा दिमाग लगाया तो मालूम पड़ा कि .माइ नेम एज खान. किंग खान की नयी फिल्म हैं । शाहरूख भलें बम्बई फिल्म इण्डस्ट्री के मशहूर अभिनेता हो । मगर देश वासी को जो उन्होनें आजादी का तोहफा दिया वो कितना लाय़क था । मैं इस पर कोई कमेंट करना नहीं चाहता ।
हॉ इतना तो भाई कहूंगा कि जिस देश का राष्ट्रपति एक मुस्लिम हो ,जहॉ के फिल्म उद्योग में खान का बोलबाला हो । जिस देश का गाना एक मुस्लिम के गाए जाने के बाद हिट हो गया । उस देश में ये कहना हैं कि माइ नेम इज खान कितना श्रेयस्कर हैं । ये आप लोग ही अंदाजा लगा लीजिए ।
चलिए जाने दीजिए क्योकिं मेरे बगल में बैठी किंग खान की बहुत बड़ी पंखी हैं । और इस लेख को पढ़नें के बाद मेरी क्लास लगानें की तैयारी कर रहीं हैं । खैर मैं तो ये ही कहूंगा कि माइ नेम इजा नॉट खान ...
आपका अपना
दिलीप ...

Saturday, August 1, 2009

चैनल,जातिवाद और राजनीति ...



चैनल,जातिवाद और राजनीति ...
न्यूज चैनल और स्क्रीन पर न्यूज पढ़ती एंकर । जिसे देखकर अधिकतर लड़की और लड़कियां । पत्रकार बननें का सपना देखने लगती और लगता है । मेरी एक एक महिला मित्र हैं । पेशे से सरकारी नौकरी में हैं । अभी एक विश्वविद्यालय से पत्रकारिता का कोर्स किया हैं । साथ में एंकर का भी कोर्स किया हैं । जो भी लोग किसी कोर्स करतें हैं उन्हें ये तो पता होगा कि प्लेसमेंट का क्या होता हैं । और इसको लेके कइसे कइसे सब्जबाग दिखाया जाता हैं । खैर जाने दीजिए फिलहाल अभी मैं अपनें महिला मित्र की बात करता हूं । अगर वो इसको पढ़ेगी तो मुझे जरूर तरह तरह के उपनाम से नवाजनें से नहीं चूकेंगीं । मैडम को लगता हैं कि एंकर बनना बहुत आसान हैं । और खालीये अपनें टैलेंट के बलबूते ही वह अपनें मुकाम तक पहुंच जाएगी । अब उसको कौन समझाये । ये कहानी केवल इस महिला की ही नहीं । परतुं हर उस शख्स की हैं जो आसमान में उड़ते हैं । कमोबेश यही हालत मेरे रूम में रहनें वाली साथीयों की भी हैं । उनकों भी ऐसा ही लगता हैं । खैर वो किसी और फील्ड के हैं । इसलिए वे क्या जानें कि हम दीवानों की क्या हालत हैं । ई हॉ आके काम करिहन त पता चली । कि का बा मीडिया ।
अगर आप अपना रोना किसे के सामनें रोएं तो वो आपको यहीं समझेगां कि आप बहुत बड़ें सीएचयूटीआईए हैं । लेकिन क्या कीजिएगा । आदमी हमेशा अपनें को काबिल और दूसरों को ऊपर लिखा हुआ समझता हैं ।
चैनल से लोगों को दिखनें वाले सपनें कितनें क्रूर होते हैं । ये तो वहीं बता सकता हैं जिसनें इसको देखा और पूरा करनें कि कोशिश की । और नहीं कर पाया । मैनें अक्सर लोगों से सुना हैं और जनाब कुछ का तो यहॉ तक कहना हैं । आपकें अंदर दम नहीं हैं । नहीं तो आप भी आज अच्छे चैनल में होतें । उनकी बात सुनकर हंसी भी आती हैं । और अपनें ऊपर ग्लानि भी होती हैं । लेकिन क्या करू कहा गया हैं कि समय बहुत बलवान होता हैं । समय ही बताएगा कि क्या क्या स्थिति हैं ।
सपना देखनें में मेरे जानकारी के मोताबिक कहीं भी रोक नहीं हैं । और बंद आखें क्या खुली आखों से भी सपना देखना चाहिए । लेकिन इसे पूरा करनें वाला ही जानता हैं कि क्या कठिन डगर हैं पनघट की । हम चैनल वाले भलें लोगों को ज्ञान बाटते फिरे लेकिन खुद कितनें ज्ञानी हैं । ये तो ई हॉ आने के बादे पता चलता हैं । दुनिया भर में फैले अंधविश्वास को आड़े हाथों लेतें है मगर खुद ही इस समस्या से कितनें ग्रसित हैं । ये किसी स्ट्रगलर से पूछिये तो बताएगा । आपस में प्रेम सौहार्द की बात करते हैं । मगर खुद कितना रखते हैं । ये यहॉ काम करनें वालों से ही जानिए तो जादे नीक रहेगा । खैर जाने दीजिए आपनें तो वह गाना सुना ही होगा कि " कुछ तो लोग कहेगें लोगों का काम हैं कहना "। वहीं दूसरी तरफ मैं आपको बता दू मैं यहॉ कि वस्तुस्थिति से अवगत कराना चाहता हूं ना कि किसी को डराना या भ्रमित करना चाहता हूं ।
अंतिम में दुष्यंत कुमार की वो पंक्ति दोहराना चाहूंगा जो नीचे हैं ....
हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं ,
मेरा कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए ।

Wednesday, July 22, 2009

ग्रहण और मैं ...

२२ जुलाई को पूरे देश में ग्रहण आखिरकार सफलता पूर्वक हुआ। बाकी टीवी चैनलों के लिए बैठे बिठाए मुद्दा मिल गया । बात कुछ नहीं । लेकिन बनाया बवंडर । लगभग सभी चैनलों नें इसको हाथो हाथ लिया । और साथ हीं दोसरे महत्वपूर्ण खबरों को छोड़नें में कोई कोताही नहीं बरतीं । अब ये भी जगजाहिर कि लगभग सभी चैनल पथभ्रष्ट हो चुकें हैं । खैर जाने दीजिए मैं भी इस पथभ्रष्ट भीड़ का सदस्य हूं । और दूसरी तरफ अच्छे नौकरी की तलाश कर रहा हूं । अगर कहीं किसी चैनल नें इसे पढ़ लिया तो मुझे नौकरी भी नहीं देगें ।
ग्रहण की तैयारी आमजन ना भी करता मगर इसमें चैनल वालों नें कोई कमी नहीं रखी । खैर किसी तरह ग्रहण खत्म हुआ । गर्भवती महिलाओं नें भी इसकों देखा । मगर उनकों कुछ नहीं हुआ । ऐसा क्यूं हुआ इसपर चैनल वालों को जरूर पूछना चाहिए । ग्रहण के दिन यानी आज मेरे एक रिश्तेदार नें सुबह फोन किया । करीबन तड़के चार बजें । मैं गहन निंद्रा में था । बरहाल फोन उठाया गया । फोन पर उन्होनें मेरे नींद को लेके सवाल खड़े कर दिए । बात मैं ध्यान आया कि ग्रहण का भूत आनें वाला हैं । मन ही मन मैं चैनल वालों को कोस रहा था । तो दूसरी तरफ उदारीकरण के इस दौर में बढ़ रहें अंधविश्वास को झुठंला नहीं पा रहा था ।
वैसे जब मैं गांव में था तो हम लोग ग्रहण की खास तैयारी करतें थे । वों भी कुछ देसी टाइप का । जो मैं आज काफी मिस कर रहा था । पर मेरा विश्वास हैं कि आज के आधुनिकता के चक्कर में फंस कर गांव वालें भी पुरानी तैयारी को छोड़ गए होगें । और विदाई कर लिया होगा । लाइट लाइट आपको उस तैयारी के बारें जरूर बताना चाहूंगा । हम लोग एक थाल में पानी भरतें थें । उसके बाद ग्रहण होने के समय उस पानी वालें थाली में सूर्य को देखते थें । बाद में वैज्ञानिक कारण भी गांव के लोग से मालूम हुआ । अब ये बताना जरूरी नहीं हैं कि गांव में आपकों गाहे बगाहे यदा कदा हर आदमी वैज्ञानिक ही मिलेगा ।
अभी ऑफिस में बैठा हूं । और अपनें काम के साथ साथ कुछ लिखनें की भी चाहत हुई तो लिख दिया । जल्दिए आपकों और भी लेखों से रूबरू करवाउगां । फिलहाल अभी इजाजत दीजिए । प्रणाम ...

Sunday, July 12, 2009

मुझे इश्क हुआ हैं ...

हीरों--मुझे इश्क हुआ हैं
उसका दोस्त -- किससे
हीरों-- लड़की से और क्या
आज टीवी पर एक फिल्म आ रही थी जिसका रसास्वादन मैं अकेले कर रहा था । वहीं दूसरी तरफ न्यूज चैनल सब इस समय गे मुद्दे पर खेल रहें थे । ऊपर लिखी गई शुरूआती डॉयलाग के बाद जब मैनें खबरिया चैनलों के तापमान को जानना चाहा तो ये दृश्य देखा । कुछ देर सोचता रहा । लेकिन फिर सब कुछ शीशे की तरह साफ हो गया ।
कोर्ट के ऐतिहासिक निर्णय के बाद जहॉ एक तरफ मॉ बाप की चिंता बढ़ गई हैं । वहीं दूसरी तरफ शब्दों के ठीक से इस्तमाल करने की भी चिंता बढ़ गई हैं । जी हॉ ऊपर निकाले गये फिल्मी डॉयलाग कुछ ही बातों की तरफ इशारा करता हैं । जाने अन्जाने में सही ऊपर फिल्माए गए डॉयलाग में समलैंगिकता की झलक मिलती हैं । बरहाल आज से कुछ समय पहले भले इन दो अर्थों वाली संवाद पर मुहं झेप लिया जाता हो पर अब ये धारणा बिल्कुल उलट गयी हैं । जिसका नतीजा आप दोस्ताना के रूप में देख चुके हैं । वैसे दोस्ताना की शुरूआत बहुत पहिले हो गयी हैं । लेकिन जिस तरह से आज लोग बोल्ड हो गए है । वो भविष्य में होने वाले हमारे समाज के बदलाव का सूचक हैं । ये बदलाव समाज को फायदा पहुंचाएगा ये तो आने वाले समय में हीं पता चलेगा । वहीं इसका नुकसान भी समय के साथ ही पता चलेगा । लेकिन इतना तो है कि बैठे बिठाए कम से कम खबरिया चैनलों वालों को मुद्दा मिल गया हैं । खैर अपनों को क्या हैं हम तो जैसे थे वैसे ही रहेगें । वैसे बदलाव ही प्रकृति का नियम हैं । और हमें इस बदलाव को स्वीकार करना होगा ।

Saturday, July 11, 2009

२४*७ का माया

आज से कुछ साल पहलें तक लोग शाम के बाद निकलना पंसद नहीं करतें थे । वहीं लोग आज कल देर रात रोड पर घूमते देखे जा सकतें हैं । जो लोग रात में जगना पंसद नही करते थे । वे आज की तारीख में रात की शिफ्ट करते नजर आ रहें हैं । जिस शहर में शाम होनें की आहट मात्र से बहू बेटियों का घर से बाहर निकलना वर्जित था । उसी शहर में वहीं बहू बेटी रात में नौकरी करती दिखाई दे रही हैं । कुल मिलाकर अगर हम ये कहें कि ये २४*७ की माया हैं तो अतिशोयक्ति नहीं होगी ।
ये २४*७ के कल्चर की शुरूआत देश में कॉल सेंटर के उदघोष के बाद हुई । ज्ञात हो कि अमूमन कॉल २४ गुणे ७ के फंडे पर काम करते हैं । कॉल सेंटर के बाद बारी थी मॉल कल्चर की । जिसके आने के बाद देश का कल्चर एकदम ही बदलता हुआ नजर आया । अभी अगर हम एक सरसरी नजर मैट्रो शहर के लाइफ स्टाइल पर गौर फरमाए तो देखेंगे कि २४*७ का कल्चर कितना हावी हो चुका हैं ।
इसी तरह कमोबेश मीडिया का हाल हैं । टाइम पास करने का ये कल्चर मीडिया में बुरी तरह हावी हैं । जिसका नतीजा यह है कि तमाम लोग जो इस कल्चर में फंसे हैं वो किसी ना किसी रूप से परेशान हैं और जिंदगी से त्रस्त भी ।
औरों की तरह मैं भी इस कल्चर में जी रहा हूं । और लाइट लाइट का मजा ले रहा हूं । जिसका नतीजा ये हैं कि सुबह चार बजे के समय ब्लाग ब्लाग खेल रहा हूं । खैर चलिए जाने दीजिए जिंदगी में जो लिखा है वहीं होगा । सुबह के चार से अधिक हो गया है । अउर ब्रहममूहुर्त शुरू हो गया है ।
आप सभ को इस अदने से पत्रकार का सुप्रभात । प्रणाम ...

टी.वी चैनलों का उमडता गे प्रेम...

२ जुलाई का दिन दिल्ली हाई कोर्ट का वह आदेश पूरा मीडिया जगत के शब्दों में कहें तो खेलनें वाला मु्द्दा दे गया । जी हॉ हम बात कर रहें हैं हाई कोर्ट के उस आदेश का जिसमें देश में अपनें मर्जी से समलैगिंक संबंध को मंजूरी दे दी गयी थी । ठीक हॉ भाई समलैंगिको मंजूरी मिली। उनको राहत मिला । पर उनका क्या जिनका चैन हराम हो गया । आखिर जो गे नहीं उनकी तो शामत आ गई । इधर चैनल वालों को ऐसा मसाला मिल गया जिसकों कोई भी चैनल नें छोड़ना उमदा नहीं समझा । उधर इस चक्कर और दूसरें मुद्दे जरूर छूट गए । खैर एक बात तो हैं हाई कोर्ट के इस आदेश नें देश में एक बार फिर इस बात पर बहस छेड़ दी हैं कि क्या हम आधुनिकता के चक्कर में अपनी सभ्यता को भूलते जा रहें हैं । बरहाल अगर हम इतिहास के पन्नें को कुरेदतें हैं तो पाएगें कि महाभारत काल से हीं समलैंगिक संबध रहें हैं । मुआफ कीजिएगा पर मेरे सामान्य ज्ञान के मुताबिक शिखंडी भी गे थे । यहॉ तक कि वनवास के दौरान अर्जुन को भी महिला का रूप धारण करना पड़ा था । उस जमाने के मुताबिक वे भलें ही समलैंगिक ना हो पर आज के जमाने के मुताबिक उन्हें भी गे के श्रेणी में लाके खड़ा कर दिया हैं । वैसे हमें किसी महान व्यक्ति के नाम को छोड़कर मुद्दे पर वापस लौंटना चाहिए । अन्यथा वैसे भी अभीं मुद्दों की सक्त कमी हैं । हैं तो हम बात कर रहें थे टीवी पर समलैंगिकों पर दिखाए जा रहें कार्यक्रम के बारें में । ऐसा लगता हैं कि इन टीवी चैनलों नें लोगों को गे बनानें का ठेका ले लिया हैं । जब टीवी को ट्यून कीजिए किसी ना किसी चैनल पर गे बिकतें नजर आ जाएगें । वैसे में भी टीवी का पत्रकार हूं । पर क्या करू । और बड़ी बात कि मैं कर भी क्या सकता हूं सिवाय जो हो रहा हैं उसमें शरीक होके गर्दन हिलानें के अलावा । खैर जहॉ कोर्ट के इस फैसलें के पक्ष काफी सारे गे लोगों में खुशी की लहर दौड़ गयी हैं वहीं इसकें खिलाफ काफी लोग लामबंध हो गए हैं । वहीं सुप्रीम कोर्ट नें भी सरकार को नोटिस जारी किया हैं । जिससें लोगों की आशा बढ़ी हैं । ये तो आनें वाले समय में हीं पता चलेंगा कि क्या होता हैं । बाकी न्यूज चैनल वालों को बैठे बिठाए खेलनें के लिए अच्छा मुद्दा दे दिया हैं ।

Friday, July 10, 2009

मॉ भैया...भैया ले आए

घर की घंटी बजी साथ साथ बहुत लोगों की । अंदर से गुड्डी दौड़ती हुई झट से दरवाजा खोली । बाहर खड़े भैया ने गुड्डी से कहा गुड्डी ये तुम्हारी भाभी हैं । गुड्डी के चेहरें पर खुशी के जगह बारह बज गए और वह फिर दोबारा जितनी तेजी से दौड़ती हुई आयी थी उतनी तेजी से वापस दौड़ती हुई मॉ के पास गयी । और मॉ से बोली मॉ भैया ... आपके लिए भैया लेके आए हैं । मॉ को कुछ समझ में नहीं आया । और वह बोली क्या बकती हैं कहती हूं टीवी कम देखा कर । तब तक भैया नये भैया के साथ घर में आ चुके थे । अंदर आकर भैया बोले मॉ ये तुम्हारी बहू हैं । अब बारी थी मॉ की । दरवाजे के घंटी की मॉ की भी घंटी बज गईं ।
जी हॉ भलें ये कहानी काल्पनिक हो । पर आनें वाले समय में ऐसा होने से इंकार नहीं किया जा सकता । वो दिन दूर नहीं जब भैया मूछ वाली भाभी लेके आए । कम से कम कोर्ट से मिलें मंजूरी के बाद तो इसके पॉजिटिव संकेत मिलते हैं । हाल में कोर्ट से मंजूरी मिलनें के बाद समलैंगिकों के हौसलें जिस तरह से मस्त हो रहें हैं उससे यहीं लगता हैं कि आनें वाले दिन में मॉ बाबूजी के हौसलें पस्त होगें । और उनके आशा पर किस तर ह पानी फिरेगा । गौरतलब हैं कि हाल में ही कोर्ट नें समलैगिंक संबंध को वैध करार दिया था । और दोनों पक्ष में आपसी रजामंदी के बाद हुई शादी को भी जायज ठहराया था । जिसके बाद देश के दर्जनों मॉ बाप के ऑखों से नींद गायब होना लाजिमी हैं ।
वैसे जहॉ तक हमारे यानी मेरे ज्ञान का संबंध हैं इसका उल्लेख काफी पुरानें ग्रथों में मिलता हैं । हालाकिं इस बात को हम यही पर छोड़ना पंसद करेंगें । क्योकिं एक तो ये पहलें से विवादित हैं ऊपर से आजकल बैसे भी मुद्दों की सख्त कमी हैं । वैसे पश्चिमी देशों में इस कुप्रथा का प्रचलन काफी दिनों से हैं । पर हमार भारत में ये नदारद तो नहीं कहेंगें पर खुलेआम नहीं होता था । जो अब होना शुरू होगा । खैर छोड़िए भी आखिर मैं आपकों कब तक अपनें बोरिंग लेखनी से चाटता रहूंगा । वैसे भी इस मामलें में मेरी मर्जी हैं । झेलना आपकों है । झेलना हैं तो झेलिए नहीं तो कोई और ब्लाग के तरफ रूख कीजिए ।
बाकी अंत में एक चीज जरूर कहूंगा अबहीं अगर छोटी अवधि के लिए देखा जाए तो इसका बहुत फायदा हैं । सबसे पहिले कि आबादी नहीं बढेगी। जितना भी बुआई कीजिए फसल उतना ही रहेंगा । दुसरा फायदा ये कि शादी बियाह का खर्च कम हो जाएगा ।
लेकिन इसकों अपनाने से पहिले ये सोचना होगा कि मॉ बाप के सपनें को क्या हम ऐसे ही अपनें स्वार्थ के चलते कुचलतें रहेंगें । क्या हम प्रकृति से ऐसे ही पंगा लेते रहेंगें और हम सबकी प्यारी दुलारी धरती को सर्वनाश के तरफ ले जाएगें । अगर हमारा जवाब हैं तो फिर तो दीवाल में अपना माथा अपनें से मारनें वाली बात हो गयी । अगर जवाब नहीं हैं तो फिर हमें इसकें खिलाफ एकजुट होना चाहिए और इसका मुकाबला हमलावर तरीके से करना चाहिए ।
अभी मेरे दलान से बस इतना हीं क्योकिं सुबह के साढ़ें तीन बज गए हैं और मुझे काम करना हैं ।

Thursday, July 9, 2009

मैं और मेरी तन्हाई...

मैं और मेरी तन्हाई .... सिलसिला के इस सिलसिला चला वो आज भी थमनें का नाम नहीं ले रहा हैं ... जी हॉ आज भी लड़के अपनें प्रति सहानुभूति वोट लेनें के इस डायलाग से बे इन्तहा प्यार करते हैं ... मुआफ कीजिएगा आप भले ही गलत मान रहे हो और मेरी बात पर विश्वास नही कर रहें हो ... लेकिन हम हरामखोरों को ये भली भागिं आता हैं ... गॉव का चमरटोली हो या फिर बभनटोली ये संवाद दोनों टोली में कोई भेदभाव नही करता हैं .. और ना हीं ईस टोली में रहनें वाले लोग ... मेरे एक मित्र जो मेरे इस कॉलर ट्यून लगाने पर मुझनें बड़े चिढ़ते हैं ,उन्होनें मुझे रात के दो बजे फोन किया । आम आदमी को भलें ही आज दो बजे फोन करे तो आप गालियों से सुसज्जित होगें । लेकिन मेरे साथ ऐसा नहीं । अरे भाई मैं निशाचर हू यानी रात में जगनें वाला । क्योकि गाहे बगाहें ही सही मैं एक ऐसे पेशे में हूं जिसमें रहनें वालों को दल्ला के नाम से जाना जाता हैं । अरे भाई लगता हैं कि आप फिर गलत समझ गयें । आखिर समझे भी क्यों ही हमारे देश में जो चलन हैं उसमें लोग गतल चीज पहिलें सोचतें हैं और नीक चीज बाद में । बेशी क्या हूं पर ये सच नहीं तो झूठ भी नहीं हैं । हॉ तो हम बात कर रहें थे मैं और मेरी तन्हाई का । वैसें ये तन्हाई मेरी ही नहीं आपकी या यू कहें कि किसी कि भी हो सकती हैं । हॉ तो उस बंधु का आखिरकार फोन आया । और दिनों की तरह वे मुझे गाली दे कर नहीं बल्कि बहुत प्यार से बात किया । मेरी कुछ समझ मैं नहीं आया । क्योकि शुरू से ही मोटी बुद्धि हॉ भाई । इतनी जल्दिए थोडीयें ना आयेगा । बरहाल मुझे उस सज्जन नें मेरे कॉलर ट्यून पर पहली बार तारीफ की । और बोला भाई मुझे भी ये कॉलर लगावा दो । अचानक आई बदलाव से मैं सहम गया । और बदलाव वो भी रात के दो बजे । हम बिल्किल अक्का बक्का रह गए । पर कर भी क्या सकतें थे । खैर मैनें उनकी परेशानी को सॉल्व कर दिया । पर आज तक ये बात मेरे समझ नहीं आई आखिर वो तन्हाई क्या थी और क्यों थी ।

Wednesday, July 8, 2009

I AT 05:30 IN OFFICE

welcome to all of you
you all have must be amazed as well as surprised at me because I am again writing my second blog in a day after a long time. I would seek sorry for two things One for writing blog after a long time and secondly for writing such a torcherous blog again to give you headache. We people in media are well equiped with the necessary tools to fight with the time.Thereby challenging the the time system by working 24*7.Any how I am in night and hence sitting in the office on my desk and sorting out stotries.Meanwhile also writing article for you.

RAIL BUDGET 2009-10

HI, EVERY BODY RAIL BUDGET JINN FOR 2009-10 HAS BEEN out.Not only Rail budget but Aam Budget Pitara has also been opened.But what is there for aam admi is known by aam admi only.Becoz after all they have voted the UPA back to the power.
As far as my view is concerned this budget is more rural centric. It's a 50-50 cheers and tears budget. Generally it is seen that One's Cheers is others Tear's.Now look at the facts of Budget.
costilier :--- mahangai maar gai (par kya karein)
Cosmetic surgery will be costilier .which is generally used by our higher class society.
Then is Gold which will be costiler now .This is really a matter of conecrn becaz it is used by both rural and urban people.
Although income tax limit has been increased but not helpful too much as it has been increased only by 10k only. So again FM has given some of hope but that too diminished. As far as overall budget is concerned it can be termed as Ut ke muh main jeera ka phoren . Although surcharge has been reduced and exempted but my dear that too not upto the mark.
Now we talk about the FBT ( Fringe Benefit Tax ) as it has been scraped.It's good both for the employee and the employers.
I have seen that in plans have been made in accordance with keeping view of the corporates . Although this doesn't give the little bit sigh for stock markets as it felt badly on the budget day. But they after the day it catch its speed. But that too not upto the levpel.
In the last but not the least SERVICE TAX has been levied on the doctors and lawyers. Its results are being seen on the court proceedings as it is well inetrrupted in some parts of the country .

Wednesday, June 17, 2009

लाइट का फंडा और मैं ...

लाइट - एक ऐसी प्रकिया जिसको मैं दिन भर या यूं कहें के हमेशा अपनाता हूं । अभी कुछ दिन पहलें मैं नवाब की नगरी लखनऊ गया । वो भी ऑफिस से बिना छुट्टी लिए। अरे ज्यादा दिमाग मत लगाइयें मेरे साथ ऐसा ही होता हैं । क्योकिं जानें से २ घंटे पहले मुझ अभागे को भी नहीं मालूम होता है कि मैं अमुक समय पर अमुक स्थान पर जा रहा हूं । खैर अभी हम इस बारे में चर्चा नहीं करेंगें कि मुझे या आपको क्या अच्छा और क्या बुरा लगता हैं । और वैसे भी अगर मैं चर्चा भी करूगां तो आप क्या उखाड़ लेंगें । अरे भाई आखिर ये ब्लॉग मेरा हैं मै जो चाहे वो लिखू या ना लिखूं ।
बहरहाल हम मूल मु्द्दे पर आते हैं -- लाइट । अगर आप दिल्ली मैं रहतें हैं तो देखते होगें कि अमुक व्यक्ति दिन भर कुछ ना कुछ ग्रहण करता रहता हैं । मतलब कि थोड़े थोड़े देर के अंतराल पर कुछ ना कुछ पेट में मुंह के रास्ते डालता रहता हैं । यानी कि कुछ ना कुछ हल्का हल्का खाता रहता हैं । कुछ हद तक यहीं हैं लाइट की प्रकिया । जिसको हम सभी लोग को अपनें जीवन में अपनाना चाहिए जिससे कि हम सभी लोग स्वस्थ और समृद्ध बन सकें । जी हॉ मैं वहीं कहना चाहता हूं जो आप समझ रहें हैं । वहीं अगर आप नहीं समझ रहें हैं तो मैं आपकी समझ थोड़े ही बढ़ा सकता हूं । देखिये लाइट की जो प्रकिया हैं खास कर मेरा पूरबिया हैं । हम लाइट के जो सक्रिय सदस्य हैं वो हमेशा पूरबिया क्षेत्र के खाद्य सामग्री पर ज्यादा विश्वास करतें हैं । ना कि टाम,डिक और हैरी की तरह बर्गर खा लिया या फिर पेप्सी पी लिया या फिर चाउमीन खा लिया । वगैरह वगैरह । हम लोग काम बिल्कुल दरिद्र पूरबिया के तरह ही करते हैं मगर डेलाहाइट की तरह ।
मुझे लगता हैं कि आप समझ गये होंगें कि लाइट का फंडा क्या हैं और कैसे होता हैं । आपकों मानना हैं तो मानयें नही तो ऐसे ही चलते रहिए ।
आपका दिलीप

Friday, June 12, 2009

चलू सभा गाछी ...

दुल्हा दुलिहन के सजल धजल चेहरा ... आउर मॉ बाप के चेहरा पर परेशानी के सबब ... त ओतेय पंजीकार के ओतह लोग लोग सभ के भीड़ ... कियो अपन बहिन लेल त कियो अबन भाई लेल , ककरों बेटी के ब्याह करब‌ऽ के छय त ककरों अपन दुलरा बेटा के लेल बहू लाब‌ऽ के छय ... ककरों अप्पन घरक लेल घरेलू बहू चाही त ककरों अपना घर लेल मार्डन बहू चाही ... ककरों पाइ बेशी चाही त ककरों पाइ नय लड़की नीक चाही ... ई नजारा छय सभा गाछी यानी सौराठ सभा के ... हर साल मिथिला के पावना धरती पर लाग‌ऽ वला ई सौराठ मेला ई हो बेर २६ जून स‌ऽ लाग‌ऽ वला छय ... जे १ जुलाई त चलतय ...
बिहार के मुख्यालय पटना स‌ऽ दू सौ किलोमीटर दूर पर स्थित मधुबनी जिला के सौराठ गांव में हर साल सभा लागैत अछि ... एकर इतिहास बहुत पुरान छय ... लगभग १२ वीं शताब्दी में ई सभा के शुरूआत तत्कालीन मिथिला के राजा हरिसिंह देव द्वारा भेल रहय ... ई सभा के मुख्य काज वर पक्ष आउर वधू पक्ष के एगो मंचा प्रदान केनाय रहेय ... जेमें दूनों तरफ के लोग सब आबि सकेय आउर अप्पन अप्पन जरूरत के हिसाब स‌‌ऽ जोड़ी के चयन क‌‌ऽ सकय...मिथिला के पावन धरती पर लाग‌ऽ वाला ई मेला भले आजि आपन पहचान खो रहल छय ... मुदा पहिले ई बहुत प्रचलित रहेय ...
नीक काज खातिर शुरू भेल ई महापर्व आईं अपन पहचान लेल भटक रहल छय ... मुदा जतेक संगठन छय एकरा बढ़ाव में मदद करे के नाम पर अपन राजनैतिक सुहाली सेंक रहल छय ... ओतेय एकर प्रतिषठा में दाग लगाव‌ऽ में मीडिया के से हो कम योगदान नय छय ... अपना आप के देश के चौथा स्तंभ मान‌ऽ वला ई मीडिया ई सभा के प्रतिष्ठा तार तार कर‌ऽ में कोनों कसर नय छोड़ल कय ...
ई साल फेर ओतेय हर साल के जेना ईहों साल २६ जून स‌ऽ १ जुलाई तक सौराठ गांव में ई सभा लागत ... मुदा सबसे बड़का बात अछि कि ई साल कतेक मिथिलावासी ई सभा में जेताह ...
जरूरत अछि एक बेर फेर से सब मिथिलावासी के एक होब‌ऽ के ... आउर सभा गाछी फेर ओकर पुरान पहचान लौटाब‌ऽ के ...
अहॉक दिलीप ...

JODIS ARE MADE IN HEAVEN ?

JODIS ARE MADE IN HEAVEN ...

Today I would take to the small but unique, rich but poor tinsel town of the Bihar located in the northern part ... It takes around six to seven hours to view this district from the state head quarter " Patna" ... We are talking of the heartland of Mithila " Madhubani " which is better known for its Painting rather than its Paan , Makhaan and Machch...Other unique things you will find here once you reach here is its unique style of marriage and the traditions ... Makhana Kheer , Achar, Sattu, Thekua , Khaja are among the famous eatables having unique taste of Mithila...

Mithila is the same nagri which till nowadays bettter known Land of Sita, the Land of king Janak, and the in laws house of Lord Ram ... Now Mithila is better known for it poverty and its top level officers not in the government sector but in the private sectors too ... Apart from this the Saurath Sabha , the Grooms mandi, is located here ... Like every year this year too the Saurath Sabha will be organised ... But there will be few takers of it ...

Lets go in the history in brief about the Saurath Sabha ... Saurath Sabha or Sabha Gachi as it is populary known as , was started in 12th century by the then Mithila king Hari Singh Deo Rai to facilititate both brides and grooms for doing the best and easily search for their counterpart...But anyhow this unique tradition is diminishing without any takers ... Actually peoples of Mithila are not to be solely blamed for this ... Media who is now playing as a watchdog of the sysytem have created havoc in the minds of public rather than to popularise its positivity it has only advertised the happenings which only happens as a exception over here ...
From my blog I will request the fourth pillar to act in responsible manner with the great responsibilty before dismantling the whole culture and unique tradition of Mithila Sabha Gachi...Not only media but Mithila wasi should need to draw their attention towards the loosing charm of Sabha Gachi ...
After all this Mithilanchal is Going to have its Sabha from 26-06-09 to 01-07-09 at Sabha Gachi ( Saurath Sabha ) ...

Your's Dilip ...

Saturday, June 6, 2009

लाइट का फंडा नवाब की नगरी में

आज नवाबों की नगरी लखनऊ से लौटा हूं । ‍वहॉ लाइट अभियान को प्रसारित करके आया हूं । इस बारे जल्द हीं मैं आप सबको बताऊगां कि आखिर लाइट अभियान आखिर हैं क्या । आखिर लोग क्यों लोग लाइट को इस्तमाल करते हैं आदि इत्यादि चीजों पर नजर डालेगें जल्दी ही । तो फिर आप पढ़ते रहिए ।
आपका दिलीप

PREGANT LADY AND HER DAUGHTER

TODAY I CAME BACK FROM MY SHORT TOUR FROM LUCKNOW ... THIS IS TO BE WORTHY TO MENTION THAT I HAD GONE LUCKNOW ON 04-06-09...TODAY I WOULD LIKE TO SHARE MY EXPERIENCE ON MY WAY TO LUCKNOW ...
I REACHED GHAZIABAD STATION AROUND 8:45 IN THE EVENING...AS I WAS NOT HAVING ANY KIND OF RESERVED TICKET... SO I HAD NO OPTION TO CATCH MY FAVOURITE TRAIN LUCKNOW MAIL LASTLY AND HAD TO TRAVEL ON A GEN TICKET WHICH I USUALLY DO AS MY TOUR IS ALWAYS ENEXPECTED AND EVEN I DONT KNOW IT ... IT'S NOT A FIRST TIME THAT HAPPENED TO ME ... WHO KNOWS ME CLOSELY KNEW WELL ABOUT MY UNCERTAIN NATURE ...
MEANWHILE ON THE WAY OF WAITING FOR THE ARRIVAL OF TRAIN I SAW A PREGANT LADY , ALSO AS I GUESSED WAS MENTALLY CHALLENGED ... AND ADDING TO MY CONFORMITY I CLOSELY WATCHED HER ACTIVITY AND REACHED ON FINAL CONCLUSION THAT SHE IS MENTALLY CHALLENGED AND OF ILL HEALTH TOO...
SHE WAS HOLDING HER TWO YEAR OLD DAUGHTER , AS I GUESSED , IN HER ONE HAND AND IN OTHER SHE HOLD HER WHOLE HOUSE WHICH MAINLY CONSISTS OF HER BED COVER AND A SHAWL ... AFTER ALL THE LADY WAS PREGANT OF AROUND 4 MONTHS AS IT WAS CLEAR ON THE PRIMA FACIE INSPECTION ...
ALTHOUGH MANY YOUNG AND BEAUTIFUL LADIES WAS HOVERING AROUND THE PALTFORM NUMBER 4 AT WHICH LUCKNOW MAIL SPECIAL WAS SUPPOSED TO COME ... BUT MY LADY FOR THE NIGHT WAS THE WHO WAS PREGNANT, WHO WAS MENTALLY CHALLENGED, WHO WAS DOING ALL SORTS OF THINGS TO PROTECT HER ONLY DAUGHTER, WHO WAS WAITING FOR ANOTHER CHILD TO COME WITHOUT ANY HAPINESS ON HER FACE , WHO WAS NOT KNOWING WHY TO LIVE AND AFTER ALL WHO WAS NOT KNOWING WHAT SHE WOULD EAT AND WHAT SHE WILL BE FEEDING HER DAUGHTER AND HOW SHE WOULD BE DOING TO COM UP HER DAUGHTER ...
MEANWHILE ON THE OTHER HAND ONE VIP PERSON WAS ALSO WAITING , NOT LIKE ME, TO CATCH THE SAME TRAIN ... I WAS ASTONISHED TO SEE THAT NO ONE WAS LOOKING TO HER WAS NOTICING ... SHE RUSHED TO THE VIP ,WHOM I RECOGNISED BUT WOULD NOT DISCLOSE HIS NAME ON MY BLOG FOR ASKING FOR THE FOOD ... BUT OPPOSITE TO HER EXPECTATION THE SECURITY GUARD OF THE VIP TOOK NOT A SINGLE MINUTE TO THROW HER OUT OF SIGHT FROM HEAVY WEIGTH VIP ...
I WAS REALLY SURPRISED TO SEE THE ACTION BEING TAKEN BY SECURITY GUARD WHOSE CONDITION WAS LITTLE BETTER THAN HER ... BUT THEY DON'T TOOK THE HUMANITY ANYHOW WAS MY MAIN CONCERN,FOR WHICH I FEEL SORRY ... ANY HOW I WAS ALSO THE PART OF THAT CROWD WHICH TURNED DOWN HER EXPECTATION BY SAYING AAGE BADHO AND TURNING MY FACE OFF ... ANY WAY THIS IS NOT THE FIRST TIME THAT OUR VIP ( BUREAUCRAT) HAS HUMILIATED THE MENTALLY CHALLENGED PERSO OR IT WILL BE WISE TO SAY THE NEEDY ONE ...
BUT MAIN POINT OF CONECERN WILL IT BE GOING ON , WILL IT BE STOPPED , OR WILL BE CONTINUED ...
ON TIME MY TRAIN REACHED AT LAST ... AND WE ALL SELFISH AND DUMB AS WELL AS BLIND NOT FROM EYE BUT FROM HEART TURNED TO OUR RESPECTED COACHES WITHOUT HAVING IN MIND OF HER LADY ... ALTHOUGH THIS IS NOT OUR ROUTINE BUT WIIL BE THE DAILY ROUTINE OF THE PREGANT LADY ... EVERY DAY THOUSANDS OF PEOPLE WILL BE COMING TO CATCH THE TRAIN WITHOUT NOTICING HER AND THE LADY NOTICING EACH ONE OF THEM WITH HER EXPECTATION THAT SOMEDAY ANY ONE WILL COME AND FULLFILL HER EXPECTATION ...
NOW I WILL BE LEAVING AT THIS POINT BY GIVING YOU ALL THE FOOD FOR THOUGHT FOR TODAY ... NOW THE BALL IS INTO YOUR HAND ... I THINK MY QUESTION WILL BE ANSWERED ... AND SOME ONE FROM THE TOP WILL TAKE THE AFFIRMATIVE ACTION ...

Monday, June 1, 2009

आप लोग सोच रहे होंग कि इस पागल को आज क्या हो गया है कि लगातार एक पे एक ब्लाग लिखे जा रहा हैं । लेकिन माफ कीजिएगा एक और ब्लाग अब तो लिख के ही दम लूगां । मेरे बगल में मेरे एक सहकर्मी बैठें हैं जिनकों मैनें अपना ब्लाग दिखाया । उन्होनें ब्लाग देखनें के बाद कहा कि भाई कुछ हिन्दी में भी लिखें । आप तो खाली अंग्रेजी को ही तरजीह दे रहे हैं । उनकी ये बात मुझे लग गयी और मैं जुट गया एक और लेखनें की तरफ ।
बात शुरू करता अपनें मित्र की बात से । उन्होनें कहा अंग्रेजी भाषा को तरजीह देनें कि । ठीक हैं मैं इस भाषा को तरजीह दे रहा हूं । लेकिन इसमें भी क्या कर सकता हूं । मै तो वही कर रहा हूं जो मुझे विरासत में मिला हैं । और आगे जाके मुझे सफलता की शिखर तक पहुचाएंगा । अब जरा सफलता कि बात कर ली जाए । क्या आपको लगता हैं कि अंग्रेजी भाषा से ही सफलता मिल सकती हैं । अगर व्यक्तिगत तौर पर देखा जाए तो सफलता के लिए चाहे हिन्दी हो या फिर कोई और पकड़ होना ज्यादा जरूरी हैं । कृपया एस पकड़ शब्द को चंबल में प्रयोग होने वाले शब्द से ना देखे । वैसे अगर आप एसे दिखिएगा तब पर भी मैं आपका क्या बिगाड़ सक हूं । बस आप की अपराधी सोच को समझ के । खैर जाने दीजिए बात को यहीं विराम देना चाहूंगा क्योकिं जाहिर शिफ्ट खत्म होने को हैं । यानी कि हरामखोरी की जो आदत लग गइ हैं उसका समय ओवर हो गया है । अरे भाई लगता है आप अभी भी नहीं समझे कि दिहाड़ी पूरी हो गइ हैं । घर जाना हैं औरक वहॉ फिर दूसरी हरामखोरी करनी है । तो फिर इजाजत दीजिए ... प्रणाम
आपका भवदीय
दिलीप कुमार झा

HISTORY REPEATS ITSELF ?

BELEIVE IT OR NOT ... BUT IT'S TRUE ... HISTORY REPEATS ITSELF... LET'S LEAVE THIS CONTROVERSIAL TOPIC ... AND TAKE IT FOR THE FOOD FOR THOUGHT FOR TODAY...
LET'S TALK ABOUT THE RACISM TODAY...JUST GO BACK INTO THE PAST AND RECALL THE ACTIVITY THAT TOOK PLACE ... FATHER OF THE NATION OUR BELOVED BAPU WAS ONE OF THE PROMINENT FACES I SEE WHO FOUGHT FOR THE RACISM AND WON THE BATTLE ... IT'S LONG TIME FOR THAT...ABOUT EIGHT DECADES NOW ... MUCH HAS NOT CHANGED TILL DATE ... THIS IS CLEAR FROM THE AUSTRALIAN INCIDENT...JUST RECAPSULATE THE INCIDENT...A BOY WHO HAS GONE OVER TO AUSTRALIA FOR HIS HIGHER STUDIES WAS BRUTALLY ASSAULTED AND HUMILIATED ... JUST BCOZ HE IS BLACKY , WHAT THEY POPULARLY CALLED TO INDIANS ... THIS WAS NOT THE INCIDENT BUT THE LIT OF THE FIRE THAT WAS TO TAKE PLACE ... MEDIA TAKE THIS BY BOTH THE HANDS ... I WOULD THANK THIS DUMB AND BLIND MEDIA FOR RAISING THIS ISSUE AND MAKE IT LIVE DIFFICULT FOR OUR SO CALLED HONEST AND LOYAL POLITICIANS ... BUT WAT WILL BE THE OUTCOME OF THIS INCIDENT IS THE MATTER TO LOOK UPON IN THE NEAR FUTURE ... NOT JUST NOW ANY HOW... AS FAR AS MY ANSWER IS CONCERNED IT WILL BE FORGOTTEN BY US ,OUR HONOURABLE 'POLITICIANS' AND WHAT I NAMED EARLIER DUMB AND BLIND MEDIA...
NOW I WOULD LIKE TO CONCLUDE AS IN MY BELLY ELEPHANT IS JUMPING ... SORRY FOR BE OFFLINE FOR HOURS...
DILIP

FIRST WOMAN SPEAKER IN INDIA'S HISTORY

AT LAST NEW GOVT. HAS BEEN FORMED IN CENTRE ... AND IT HAS STARTED ITS FUNCTIONING TOO ... BUT THE MOST FORTUNATE THING THAT IS GOING TO HAPPEN IS, INDIA'S PARLIAMENT IN ITS HISTORICAL SPAN OF 60 YEARS IS GOING TO HAVE IT'S FIRST WOMAN SPEAKER ... THIS REALLY PROVES THE TEXT WOMEN'S EMPOWERMENT , NOT IN THE WORDS ONLY BUT PRACTICALLY TOO ... SOON COUNTRY IS SLATED TO HAVE ITS NOT ONLY WOMEN SPEAKER BUT MEANWHILE DEPUTY SPEAKER TOO ... ACTUALLY THIS IS FIRST PROPOSED BY NDA GOVT. TO HAVE DEPUTY SPEAKER AS WOMAN ... TAKING CUE FROM THE NDA DECISION UPA TOO THROW ITS GAME CARD TO HAVE FIRST SPEAKER AS WOMAN ... MOREOVER OUR PRESIDENT IS TOO A LADY ... THIS IS AGAIN A FIRST TIMER IN INDIA'S DEMOCRACY ... CONCLUDING I WOULD SAY I HAVE NOT THE READ ARTICLE AFTER WRITING ... HENCE ANY THING WRONG IS NOT GAURANTEED ... AND I WILL FEEL SORRY TO ACCEPT IT ... PLEASE FEEL FREE TO GIVE YOUR SUGGESTION ...
FROM PRESIDENT'S DESK
DILIP KUMAR JHA