Thursday, July 9, 2009

मैं और मेरी तन्हाई...

मैं और मेरी तन्हाई .... सिलसिला के इस सिलसिला चला वो आज भी थमनें का नाम नहीं ले रहा हैं ... जी हॉ आज भी लड़के अपनें प्रति सहानुभूति वोट लेनें के इस डायलाग से बे इन्तहा प्यार करते हैं ... मुआफ कीजिएगा आप भले ही गलत मान रहे हो और मेरी बात पर विश्वास नही कर रहें हो ... लेकिन हम हरामखोरों को ये भली भागिं आता हैं ... गॉव का चमरटोली हो या फिर बभनटोली ये संवाद दोनों टोली में कोई भेदभाव नही करता हैं .. और ना हीं ईस टोली में रहनें वाले लोग ... मेरे एक मित्र जो मेरे इस कॉलर ट्यून लगाने पर मुझनें बड़े चिढ़ते हैं ,उन्होनें मुझे रात के दो बजे फोन किया । आम आदमी को भलें ही आज दो बजे फोन करे तो आप गालियों से सुसज्जित होगें । लेकिन मेरे साथ ऐसा नहीं । अरे भाई मैं निशाचर हू यानी रात में जगनें वाला । क्योकि गाहे बगाहें ही सही मैं एक ऐसे पेशे में हूं जिसमें रहनें वालों को दल्ला के नाम से जाना जाता हैं । अरे भाई लगता हैं कि आप फिर गलत समझ गयें । आखिर समझे भी क्यों ही हमारे देश में जो चलन हैं उसमें लोग गतल चीज पहिलें सोचतें हैं और नीक चीज बाद में । बेशी क्या हूं पर ये सच नहीं तो झूठ भी नहीं हैं । हॉ तो हम बात कर रहें थे मैं और मेरी तन्हाई का । वैसें ये तन्हाई मेरी ही नहीं आपकी या यू कहें कि किसी कि भी हो सकती हैं । हॉ तो उस बंधु का आखिरकार फोन आया । और दिनों की तरह वे मुझे गाली दे कर नहीं बल्कि बहुत प्यार से बात किया । मेरी कुछ समझ मैं नहीं आया । क्योकि शुरू से ही मोटी बुद्धि हॉ भाई । इतनी जल्दिए थोडीयें ना आयेगा । बरहाल मुझे उस सज्जन नें मेरे कॉलर ट्यून पर पहली बार तारीफ की । और बोला भाई मुझे भी ये कॉलर लगावा दो । अचानक आई बदलाव से मैं सहम गया । और बदलाव वो भी रात के दो बजे । हम बिल्किल अक्का बक्का रह गए । पर कर भी क्या सकतें थे । खैर मैनें उनकी परेशानी को सॉल्व कर दिया । पर आज तक ये बात मेरे समझ नहीं आई आखिर वो तन्हाई क्या थी और क्यों थी ।

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