Saturday, September 19, 2009

शशि थरूर ही क्यों ?

आज रात की शिफ्ट करने के बाद जब घर पहुंचा तो मन में ख्याल आया कि क्या शशि थरूर के मुद्दे को इतना उछालना सही हैं...अगले ही पल सोचा नही ये बिल्कुल सही है...आखिर ये मसला देश के करोड़ों हम जैसे भेड़ बकरी से जुड़ा हैं...अगर अपनी बात करू तो मैं अभी तक बमुश्किल गरीब रथ में भी सफर नहीं किया हैं...मेरे जैसे अदने से पत्रकार के लिए तो एसी में सफर करना भी सौभाग्य की बात हैं...और विमान में सफर करना एक दिवास्वप्न हैं...लेकिन शशि सर ने तो अपनी बात का इजहार किय़ा है...उन लोगों का क्या जो बिना बोले सेकेंड क्लास वालो को हीन भावना से देखते हैं...अगर आप गौर करे तो चाहे बस हो या फिर ट्रेन या फिर सड़क ही क्यो ना हो...हर जगह हम जैसे लोगों को मवेशी ही बनना पड़ता हैं...खैर य़े कहानी नयी नहीं हैं...परम पूज्यनीय बापू का किस्सा तो आप लोग को पता ही होगा...कि कैसे उनको ट्रेन से बाहर फेंक दिया गया था...ये तो मात्र एक उदाहरण है...वही आप गौर कीजिए तो सड़क पर कार सवार को वर्दी वाले गुंडे नही रोकते हैं...मगर दुपहिया सवार को तुरंत रोक दिया जाता हैं...क्या आपने सोचा हैं कि ऐसा क्यूं हैं...क्यों हम जैसे लोगों को ही चूसा जाता हैं...ऐसे में मुझे एक अर्थशास्त्री की बात याद आती हैं कि हमेशा शक्तिशाली लोग ही जीतते हैं...अंग्रेजी में मैनेजमेंट की कक्षा में अक्सर पढ़ाया जाता हैं कि "SURVIVAL OF THE FITTEST"...मैने भी इसको मैनेजमेंट की कक्षा में खूब पढ़ा था...और इसका अब प्रायोगिक रूप से इस्तेमाल भी कर रहा हूं...
बहरहाल पुराने मुद्दे पर वापस लौटते ही हैं...हम खाली शशि सर की ही क्यों बात कर रहे हैं...और किसी नेता का क्यों नही...फारूख अब्दुल्ला,गुलाम नबी,लालू जी, रामविलास बाबू, ऐसे ना जाने कितने नेता हैं जो इस फेहरिस्त में शामिल हैं...अफसरशाह लोग की बात तो आप छोड़ हीं दे...उनको तो इसी खातिर जाना जाता हैं...उन पर क्यो नही हगामा किया जाता हैं...क्यो नही उनपर कोई कार्रवाई की जाती हैं...इसका उत्तर ना तो आपके पास हैं नहीं मेरे पास...
इसी जवाब के चाह में...
दिलीप

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