अभी ऑफिस जाने के लिए घर से निकला तो कुछ यादें जो कि तकरीबन 20 साल पुरानी हैं अनायास ही ताजा हो गयी ... ये यादें भी कमाल की होती हैं जो अक्सर याद आती हैं ...तभी तो इसको यादे बोला जाता हैं ... बहरहाल यादों का काम हैं आना सो आ गयी... दरअसल मेरे घर के पास एक स्टेडियम हैं ... आपको बता दू कि नौएडा में खाली एक स्टेडियम हैं जो सेक्टर 21 में ...ठीक उसके सामने मेरा घर हैं...बहरहाल चूकिं दुर्गापूजा चल रहा हैं...इसलिए सुनसान रहने वाला ये स्टेडियम में आज कल रौनक रहती हैं...आजकल दुर्गा पूजा के उपल्क्षय में रामलीला का आयोजन किया जा रहा हैं...
खैर पुराने मुद्दे पर वापस लौटते हैं...मेरे घर के पास चौडा मोड़ नामक एक चौराहा हैं...जिसके पास आकर मैनें देखा कि एक सज्जन जिनकी उम्र लगभग साठ साल से ज्यादा होगी...एक छोटे से बच्चे जिसकी उम्र पांच छव बरस होगा...उनके साथ मेला देखने आया था...वो लड़का मेला देखने आया था इस पर मैं इसलिए कंफीडेंट क्योकिं उस बच्चे के हाथ में गुब्बारा था...जिसे देखकर मैं क्या हर कोई कह सकता हैं कि दोनों मेला देखने आये थे...चूकिं त्योहार का सीजन हैं और बच्चों में इसको लेकर खासा कौतूहल रहता हैं...सो चल पड़े अपने प्यारे दादा जी के साथ मेला घूमने...और दादा जी भी अपने दुलारे मुन्ना को निकल पड़े लेके रावण को दिखाने के लिए...
हाथ में गुब्बारा और दादा जी का साथ सीधे मुझे ले गया अपने बचपन के दिनों में जब मैं भी अपने बाबा के साथ दुर्गाघर ( हमारे गांव का मंदिर जहां मेला लगता हैं ) हाथ पकड़कर घूमने जाता था...खैर मैं जानता हूं वो दिन अब मेरे लिए खाली ख्वाब हैं...और मैं ये भी जानता हूं कि ख्वाब कभी पूरा नहीं होता हैं...इसी याद को समर्पित हैं ये कुछ पंक्ति..........
वो यादे जिसे मैं बचपन में ही गांव में छोड़ आया था...
वो यादे जो मेरी जिन्दगी का सबसे उत्तम समय था ...
वो यादे जिसे दोबारा जीने की चाह मुझे हमेशा रहती हैं ...
वो यादे जो मैं कभी दोबारा नहीं जी सकता हूं...
वो यादे जिसे याद करके मेरी आंखे आज भी नम हो जाती हैं ...
वो यादे जो शायद किसी के पास हो सहेजने के लिए...
वो यादे जिसे याद रखने के अलावा कोई भी विकल्प नही हैं आज ...
वो यादे जो मेरे मरने के बाद भी नही मिट सकती हैं ...
वो यादे आज अनायास ही याद आ गयी हैं मुझे...
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