Tuesday, September 29, 2009

बेचारे स्ट्रिंगरो का दर्द...

बेचारे स्ट्रिंगरो का दर्द...
अभी कुछ दिन पूर्व मेरे एक लेख को पढ़के मेरे मित्र का फोन आया । उन्होंने मेरे लेख की तो तारीफ की ही साथ ही साथ मुझे स्ट्रिंगरो पर कुछ लिखने को कहा । लगभग दस दिन बीत जाने के बाद मुझे आज इसके लिए समय मिला पाया हैं । क्या करू ऑफिस की किचकिच और नाइट शिफ्ट होने के कारण समय बहुत कम मिल पा रहा हैं । आज थोड़ा बहुत समय मिला हैं तो सोचा कुछ लिख दूं। इसलिए लिखने बैठ गया । सबसे पहले तो मैं उनसे माफी चाहूंगा । फिर कुछ लिखना चाहूगां ।
अगर आप किसी आम आदमी से पूछे कि न्यूज़ चैनल की रीढ़ कौन होता हैं । तो जनाब एक ही उत्तर मिलेगा कि पर्दे पर न्यूज़ पढ़ने वाली एंकर । और ज्ञान झाड़ने वाले रिपोर्टर । ये ठीक भी हैं । क्योकिं अगर कोई चैनल देखता हैं तो उसमें एंकर का भी अहम रोल होता हैं । वहीं दूसरी तरफ अगर आप किसी न्यूज चैनल वाले से पूछेंगे तो निश्चित तौर पर अधिकतर लोग स्ट्रिंगर को चैनल की रीढ़ बताएगें । और ये सहीं भी हैं। बेचारे यही बिना पैसा के दिन रात एक कर के न्यूज़ भेजते हैं । कुछ चैनल तो इन्हीं स्ट्रिंगर के सहारे चल रहे हैं। मै यहां नाम नहीं लेना चाहूगां । आगे बढ़ने से पहले समझा जाए कि आखिर स्ट्रिंगर का फंडा क्य़ा हैं और इनका अहम रोल क्यों होता हैं । और कौन होते हैं ये लोग ।
स्ट्रिंगर किसी भी न्यूज़ चैनल के संवाददाता ही होते हैं । और ठीक वैसे ही काम करते हैं । मोटे तौर पर समझा जाए तो । बस कमी होती हैं कि वे चैनल के पे रोल पर नहीं होते । यानी उनकी सैलरी तय नही होती हैं । केवल उनको अपने काम के अनुसार पैसा दिया जाता हैं । मसलन न्यूज भेजने के लिए इतना पैसा । फोनो के लिए इतना पैसा । वगैरह वगैरह । साफ हैं जितना काम उतना दाम ।
लेकिन इनकी हालत बहुत दयनीय होती हैं । जाहिर हैं इनको महीना बीत जाने के बाद भी पैसा के लिए तरसना पड़ता हैं । कई बार तो एक महीना क्या ना जाने कितने महीने इंतजार करना पड़ता हैं । इसका हिसाब तभी मिल पाता हैं । जब पैसा आता हैं । चैनल जितना स्ट्रिंगर को जितना दोहन कर पाता हैं । उतना करने का कोशिश करता हैं । बाजार में ऐसे तमाम चैनल हैं जिसमें काम कर रहे स्ट्रिंगर को महीनों से पैसा नही मिला हैं । लेकिन क्या कर सकते हैं । बाजार कि पॉलिसी एक दम साफ हैं "SURVIVAL OF THE FITTEST सरवाइवल ऑफ द फिटेस्ट " । ये फंडा खाली मीडिया कंपनी ही नहीं हर जगह हर कंपनी में लागू होता हैं ।
स्ट्रिंगर के दर्द को खाली स्ट्रिंगर ही समझ सकता हैं । दिन रात मेहनत कर के अगर महीना के आखिर में पैसा ना मिले तो उस समय की तकलीफ और मनोदशा केवल वो आदमी ही बता सकता हैं । जो कि भुक्तभोगी हैं । लेकिन हमेशा ये रीत रहीं हैं कि कमजोरों का ही शोषण किया जाता हैं । क्या आपने सुना हैं कि किसी ताकतवर का शोषण हुआ हैं । मेर हिसाब से बिल्कुल भी नहीं । मैं बस इतना ही कहूंगा इन स्ट्रिंगर पर चैनल को ध्यान देना चाहिए जिससे कि कम से कम ये चैन की सांस ले सके । और समय पर वेतन मिल सके जिससे इनको भी काम करने में मजा आए ना कि शोषण होने से किसी गलत रास्ता को अख्तियार कर लें । और खराब मनोदशा के कारण कोई गलत न्यूज़ ना भेज दें । जिससे चैनल को न्यूज़ भी उत्तम दर्जे की मिले ।

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