Monday, June 1, 2009

आप लोग सोच रहे होंग कि इस पागल को आज क्या हो गया है कि लगातार एक पे एक ब्लाग लिखे जा रहा हैं । लेकिन माफ कीजिएगा एक और ब्लाग अब तो लिख के ही दम लूगां । मेरे बगल में मेरे एक सहकर्मी बैठें हैं जिनकों मैनें अपना ब्लाग दिखाया । उन्होनें ब्लाग देखनें के बाद कहा कि भाई कुछ हिन्दी में भी लिखें । आप तो खाली अंग्रेजी को ही तरजीह दे रहे हैं । उनकी ये बात मुझे लग गयी और मैं जुट गया एक और लेखनें की तरफ ।
बात शुरू करता अपनें मित्र की बात से । उन्होनें कहा अंग्रेजी भाषा को तरजीह देनें कि । ठीक हैं मैं इस भाषा को तरजीह दे रहा हूं । लेकिन इसमें भी क्या कर सकता हूं । मै तो वही कर रहा हूं जो मुझे विरासत में मिला हैं । और आगे जाके मुझे सफलता की शिखर तक पहुचाएंगा । अब जरा सफलता कि बात कर ली जाए । क्या आपको लगता हैं कि अंग्रेजी भाषा से ही सफलता मिल सकती हैं । अगर व्यक्तिगत तौर पर देखा जाए तो सफलता के लिए चाहे हिन्दी हो या फिर कोई और पकड़ होना ज्यादा जरूरी हैं । कृपया एस पकड़ शब्द को चंबल में प्रयोग होने वाले शब्द से ना देखे । वैसे अगर आप एसे दिखिएगा तब पर भी मैं आपका क्या बिगाड़ सक हूं । बस आप की अपराधी सोच को समझ के । खैर जाने दीजिए बात को यहीं विराम देना चाहूंगा क्योकिं जाहिर शिफ्ट खत्म होने को हैं । यानी कि हरामखोरी की जो आदत लग गइ हैं उसका समय ओवर हो गया है । अरे भाई लगता है आप अभी भी नहीं समझे कि दिहाड़ी पूरी हो गइ हैं । घर जाना हैं औरक वहॉ फिर दूसरी हरामखोरी करनी है । तो फिर इजाजत दीजिए ... प्रणाम
आपका भवदीय
दिलीप कुमार झा

1 comment:

Vivek Kumar "विवेक" said...

जनाब आपने कहा कि अंग्रेजी ही आपको शिखर पर पहुंचायेगा...
लेकिन हम कहते है कि आंग्ल भाषा को ज्यादा तवज्जो मत दिजीये...क्योंकि महात्मा गांधी जी इस भाषा को ही जब भगा दिये है तो हम क्यों इसका जिक्र करे....
खैर भौजपुरी भाषा भी कम नहीं है...उन्नति के लिये.....
अगर ना समझ में आया हो तो ........
हमार टी वी देख लीजिये