Wednesday, June 17, 2009

लाइट का फंडा और मैं ...

लाइट - एक ऐसी प्रकिया जिसको मैं दिन भर या यूं कहें के हमेशा अपनाता हूं । अभी कुछ दिन पहलें मैं नवाब की नगरी लखनऊ गया । वो भी ऑफिस से बिना छुट्टी लिए। अरे ज्यादा दिमाग मत लगाइयें मेरे साथ ऐसा ही होता हैं । क्योकिं जानें से २ घंटे पहले मुझ अभागे को भी नहीं मालूम होता है कि मैं अमुक समय पर अमुक स्थान पर जा रहा हूं । खैर अभी हम इस बारे में चर्चा नहीं करेंगें कि मुझे या आपको क्या अच्छा और क्या बुरा लगता हैं । और वैसे भी अगर मैं चर्चा भी करूगां तो आप क्या उखाड़ लेंगें । अरे भाई आखिर ये ब्लॉग मेरा हैं मै जो चाहे वो लिखू या ना लिखूं ।
बहरहाल हम मूल मु्द्दे पर आते हैं -- लाइट । अगर आप दिल्ली मैं रहतें हैं तो देखते होगें कि अमुक व्यक्ति दिन भर कुछ ना कुछ ग्रहण करता रहता हैं । मतलब कि थोड़े थोड़े देर के अंतराल पर कुछ ना कुछ पेट में मुंह के रास्ते डालता रहता हैं । यानी कि कुछ ना कुछ हल्का हल्का खाता रहता हैं । कुछ हद तक यहीं हैं लाइट की प्रकिया । जिसको हम सभी लोग को अपनें जीवन में अपनाना चाहिए जिससे कि हम सभी लोग स्वस्थ और समृद्ध बन सकें । जी हॉ मैं वहीं कहना चाहता हूं जो आप समझ रहें हैं । वहीं अगर आप नहीं समझ रहें हैं तो मैं आपकी समझ थोड़े ही बढ़ा सकता हूं । देखिये लाइट की जो प्रकिया हैं खास कर मेरा पूरबिया हैं । हम लाइट के जो सक्रिय सदस्य हैं वो हमेशा पूरबिया क्षेत्र के खाद्य सामग्री पर ज्यादा विश्वास करतें हैं । ना कि टाम,डिक और हैरी की तरह बर्गर खा लिया या फिर पेप्सी पी लिया या फिर चाउमीन खा लिया । वगैरह वगैरह । हम लोग काम बिल्कुल दरिद्र पूरबिया के तरह ही करते हैं मगर डेलाहाइट की तरह ।
मुझे लगता हैं कि आप समझ गये होंगें कि लाइट का फंडा क्या हैं और कैसे होता हैं । आपकों मानना हैं तो मानयें नही तो ऐसे ही चलते रहिए ।
आपका दिलीप

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