Wednesday, July 22, 2009

ग्रहण और मैं ...

२२ जुलाई को पूरे देश में ग्रहण आखिरकार सफलता पूर्वक हुआ। बाकी टीवी चैनलों के लिए बैठे बिठाए मुद्दा मिल गया । बात कुछ नहीं । लेकिन बनाया बवंडर । लगभग सभी चैनलों नें इसको हाथो हाथ लिया । और साथ हीं दोसरे महत्वपूर्ण खबरों को छोड़नें में कोई कोताही नहीं बरतीं । अब ये भी जगजाहिर कि लगभग सभी चैनल पथभ्रष्ट हो चुकें हैं । खैर जाने दीजिए मैं भी इस पथभ्रष्ट भीड़ का सदस्य हूं । और दूसरी तरफ अच्छे नौकरी की तलाश कर रहा हूं । अगर कहीं किसी चैनल नें इसे पढ़ लिया तो मुझे नौकरी भी नहीं देगें ।
ग्रहण की तैयारी आमजन ना भी करता मगर इसमें चैनल वालों नें कोई कमी नहीं रखी । खैर किसी तरह ग्रहण खत्म हुआ । गर्भवती महिलाओं नें भी इसकों देखा । मगर उनकों कुछ नहीं हुआ । ऐसा क्यूं हुआ इसपर चैनल वालों को जरूर पूछना चाहिए । ग्रहण के दिन यानी आज मेरे एक रिश्तेदार नें सुबह फोन किया । करीबन तड़के चार बजें । मैं गहन निंद्रा में था । बरहाल फोन उठाया गया । फोन पर उन्होनें मेरे नींद को लेके सवाल खड़े कर दिए । बात मैं ध्यान आया कि ग्रहण का भूत आनें वाला हैं । मन ही मन मैं चैनल वालों को कोस रहा था । तो दूसरी तरफ उदारीकरण के इस दौर में बढ़ रहें अंधविश्वास को झुठंला नहीं पा रहा था ।
वैसे जब मैं गांव में था तो हम लोग ग्रहण की खास तैयारी करतें थे । वों भी कुछ देसी टाइप का । जो मैं आज काफी मिस कर रहा था । पर मेरा विश्वास हैं कि आज के आधुनिकता के चक्कर में फंस कर गांव वालें भी पुरानी तैयारी को छोड़ गए होगें । और विदाई कर लिया होगा । लाइट लाइट आपको उस तैयारी के बारें जरूर बताना चाहूंगा । हम लोग एक थाल में पानी भरतें थें । उसके बाद ग्रहण होने के समय उस पानी वालें थाली में सूर्य को देखते थें । बाद में वैज्ञानिक कारण भी गांव के लोग से मालूम हुआ । अब ये बताना जरूरी नहीं हैं कि गांव में आपकों गाहे बगाहे यदा कदा हर आदमी वैज्ञानिक ही मिलेगा ।
अभी ऑफिस में बैठा हूं । और अपनें काम के साथ साथ कुछ लिखनें की भी चाहत हुई तो लिख दिया । जल्दिए आपकों और भी लेखों से रूबरू करवाउगां । फिलहाल अभी इजाजत दीजिए । प्रणाम ...

Sunday, July 12, 2009

मुझे इश्क हुआ हैं ...

हीरों--मुझे इश्क हुआ हैं
उसका दोस्त -- किससे
हीरों-- लड़की से और क्या
आज टीवी पर एक फिल्म आ रही थी जिसका रसास्वादन मैं अकेले कर रहा था । वहीं दूसरी तरफ न्यूज चैनल सब इस समय गे मुद्दे पर खेल रहें थे । ऊपर लिखी गई शुरूआती डॉयलाग के बाद जब मैनें खबरिया चैनलों के तापमान को जानना चाहा तो ये दृश्य देखा । कुछ देर सोचता रहा । लेकिन फिर सब कुछ शीशे की तरह साफ हो गया ।
कोर्ट के ऐतिहासिक निर्णय के बाद जहॉ एक तरफ मॉ बाप की चिंता बढ़ गई हैं । वहीं दूसरी तरफ शब्दों के ठीक से इस्तमाल करने की भी चिंता बढ़ गई हैं । जी हॉ ऊपर निकाले गये फिल्मी डॉयलाग कुछ ही बातों की तरफ इशारा करता हैं । जाने अन्जाने में सही ऊपर फिल्माए गए डॉयलाग में समलैंगिकता की झलक मिलती हैं । बरहाल आज से कुछ समय पहले भले इन दो अर्थों वाली संवाद पर मुहं झेप लिया जाता हो पर अब ये धारणा बिल्कुल उलट गयी हैं । जिसका नतीजा आप दोस्ताना के रूप में देख चुके हैं । वैसे दोस्ताना की शुरूआत बहुत पहिले हो गयी हैं । लेकिन जिस तरह से आज लोग बोल्ड हो गए है । वो भविष्य में होने वाले हमारे समाज के बदलाव का सूचक हैं । ये बदलाव समाज को फायदा पहुंचाएगा ये तो आने वाले समय में हीं पता चलेगा । वहीं इसका नुकसान भी समय के साथ ही पता चलेगा । लेकिन इतना तो है कि बैठे बिठाए कम से कम खबरिया चैनलों वालों को मुद्दा मिल गया हैं । खैर अपनों को क्या हैं हम तो जैसे थे वैसे ही रहेगें । वैसे बदलाव ही प्रकृति का नियम हैं । और हमें इस बदलाव को स्वीकार करना होगा ।

Saturday, July 11, 2009

२४*७ का माया

आज से कुछ साल पहलें तक लोग शाम के बाद निकलना पंसद नहीं करतें थे । वहीं लोग आज कल देर रात रोड पर घूमते देखे जा सकतें हैं । जो लोग रात में जगना पंसद नही करते थे । वे आज की तारीख में रात की शिफ्ट करते नजर आ रहें हैं । जिस शहर में शाम होनें की आहट मात्र से बहू बेटियों का घर से बाहर निकलना वर्जित था । उसी शहर में वहीं बहू बेटी रात में नौकरी करती दिखाई दे रही हैं । कुल मिलाकर अगर हम ये कहें कि ये २४*७ की माया हैं तो अतिशोयक्ति नहीं होगी ।
ये २४*७ के कल्चर की शुरूआत देश में कॉल सेंटर के उदघोष के बाद हुई । ज्ञात हो कि अमूमन कॉल २४ गुणे ७ के फंडे पर काम करते हैं । कॉल सेंटर के बाद बारी थी मॉल कल्चर की । जिसके आने के बाद देश का कल्चर एकदम ही बदलता हुआ नजर आया । अभी अगर हम एक सरसरी नजर मैट्रो शहर के लाइफ स्टाइल पर गौर फरमाए तो देखेंगे कि २४*७ का कल्चर कितना हावी हो चुका हैं ।
इसी तरह कमोबेश मीडिया का हाल हैं । टाइम पास करने का ये कल्चर मीडिया में बुरी तरह हावी हैं । जिसका नतीजा यह है कि तमाम लोग जो इस कल्चर में फंसे हैं वो किसी ना किसी रूप से परेशान हैं और जिंदगी से त्रस्त भी ।
औरों की तरह मैं भी इस कल्चर में जी रहा हूं । और लाइट लाइट का मजा ले रहा हूं । जिसका नतीजा ये हैं कि सुबह चार बजे के समय ब्लाग ब्लाग खेल रहा हूं । खैर चलिए जाने दीजिए जिंदगी में जो लिखा है वहीं होगा । सुबह के चार से अधिक हो गया है । अउर ब्रहममूहुर्त शुरू हो गया है ।
आप सभ को इस अदने से पत्रकार का सुप्रभात । प्रणाम ...

टी.वी चैनलों का उमडता गे प्रेम...

२ जुलाई का दिन दिल्ली हाई कोर्ट का वह आदेश पूरा मीडिया जगत के शब्दों में कहें तो खेलनें वाला मु्द्दा दे गया । जी हॉ हम बात कर रहें हैं हाई कोर्ट के उस आदेश का जिसमें देश में अपनें मर्जी से समलैगिंक संबंध को मंजूरी दे दी गयी थी । ठीक हॉ भाई समलैंगिको मंजूरी मिली। उनको राहत मिला । पर उनका क्या जिनका चैन हराम हो गया । आखिर जो गे नहीं उनकी तो शामत आ गई । इधर चैनल वालों को ऐसा मसाला मिल गया जिसकों कोई भी चैनल नें छोड़ना उमदा नहीं समझा । उधर इस चक्कर और दूसरें मुद्दे जरूर छूट गए । खैर एक बात तो हैं हाई कोर्ट के इस आदेश नें देश में एक बार फिर इस बात पर बहस छेड़ दी हैं कि क्या हम आधुनिकता के चक्कर में अपनी सभ्यता को भूलते जा रहें हैं । बरहाल अगर हम इतिहास के पन्नें को कुरेदतें हैं तो पाएगें कि महाभारत काल से हीं समलैंगिक संबध रहें हैं । मुआफ कीजिएगा पर मेरे सामान्य ज्ञान के मुताबिक शिखंडी भी गे थे । यहॉ तक कि वनवास के दौरान अर्जुन को भी महिला का रूप धारण करना पड़ा था । उस जमाने के मुताबिक वे भलें ही समलैंगिक ना हो पर आज के जमाने के मुताबिक उन्हें भी गे के श्रेणी में लाके खड़ा कर दिया हैं । वैसे हमें किसी महान व्यक्ति के नाम को छोड़कर मुद्दे पर वापस लौंटना चाहिए । अन्यथा वैसे भी अभीं मुद्दों की सक्त कमी हैं । हैं तो हम बात कर रहें थे टीवी पर समलैंगिकों पर दिखाए जा रहें कार्यक्रम के बारें में । ऐसा लगता हैं कि इन टीवी चैनलों नें लोगों को गे बनानें का ठेका ले लिया हैं । जब टीवी को ट्यून कीजिए किसी ना किसी चैनल पर गे बिकतें नजर आ जाएगें । वैसे में भी टीवी का पत्रकार हूं । पर क्या करू । और बड़ी बात कि मैं कर भी क्या सकता हूं सिवाय जो हो रहा हैं उसमें शरीक होके गर्दन हिलानें के अलावा । खैर जहॉ कोर्ट के इस फैसलें के पक्ष काफी सारे गे लोगों में खुशी की लहर दौड़ गयी हैं वहीं इसकें खिलाफ काफी लोग लामबंध हो गए हैं । वहीं सुप्रीम कोर्ट नें भी सरकार को नोटिस जारी किया हैं । जिससें लोगों की आशा बढ़ी हैं । ये तो आनें वाले समय में हीं पता चलेंगा कि क्या होता हैं । बाकी न्यूज चैनल वालों को बैठे बिठाए खेलनें के लिए अच्छा मुद्दा दे दिया हैं ।

Friday, July 10, 2009

मॉ भैया...भैया ले आए

घर की घंटी बजी साथ साथ बहुत लोगों की । अंदर से गुड्डी दौड़ती हुई झट से दरवाजा खोली । बाहर खड़े भैया ने गुड्डी से कहा गुड्डी ये तुम्हारी भाभी हैं । गुड्डी के चेहरें पर खुशी के जगह बारह बज गए और वह फिर दोबारा जितनी तेजी से दौड़ती हुई आयी थी उतनी तेजी से वापस दौड़ती हुई मॉ के पास गयी । और मॉ से बोली मॉ भैया ... आपके लिए भैया लेके आए हैं । मॉ को कुछ समझ में नहीं आया । और वह बोली क्या बकती हैं कहती हूं टीवी कम देखा कर । तब तक भैया नये भैया के साथ घर में आ चुके थे । अंदर आकर भैया बोले मॉ ये तुम्हारी बहू हैं । अब बारी थी मॉ की । दरवाजे के घंटी की मॉ की भी घंटी बज गईं ।
जी हॉ भलें ये कहानी काल्पनिक हो । पर आनें वाले समय में ऐसा होने से इंकार नहीं किया जा सकता । वो दिन दूर नहीं जब भैया मूछ वाली भाभी लेके आए । कम से कम कोर्ट से मिलें मंजूरी के बाद तो इसके पॉजिटिव संकेत मिलते हैं । हाल में कोर्ट से मंजूरी मिलनें के बाद समलैंगिकों के हौसलें जिस तरह से मस्त हो रहें हैं उससे यहीं लगता हैं कि आनें वाले दिन में मॉ बाबूजी के हौसलें पस्त होगें । और उनके आशा पर किस तर ह पानी फिरेगा । गौरतलब हैं कि हाल में ही कोर्ट नें समलैगिंक संबंध को वैध करार दिया था । और दोनों पक्ष में आपसी रजामंदी के बाद हुई शादी को भी जायज ठहराया था । जिसके बाद देश के दर्जनों मॉ बाप के ऑखों से नींद गायब होना लाजिमी हैं ।
वैसे जहॉ तक हमारे यानी मेरे ज्ञान का संबंध हैं इसका उल्लेख काफी पुरानें ग्रथों में मिलता हैं । हालाकिं इस बात को हम यही पर छोड़ना पंसद करेंगें । क्योकिं एक तो ये पहलें से विवादित हैं ऊपर से आजकल बैसे भी मुद्दों की सख्त कमी हैं । वैसे पश्चिमी देशों में इस कुप्रथा का प्रचलन काफी दिनों से हैं । पर हमार भारत में ये नदारद तो नहीं कहेंगें पर खुलेआम नहीं होता था । जो अब होना शुरू होगा । खैर छोड़िए भी आखिर मैं आपकों कब तक अपनें बोरिंग लेखनी से चाटता रहूंगा । वैसे भी इस मामलें में मेरी मर्जी हैं । झेलना आपकों है । झेलना हैं तो झेलिए नहीं तो कोई और ब्लाग के तरफ रूख कीजिए ।
बाकी अंत में एक चीज जरूर कहूंगा अबहीं अगर छोटी अवधि के लिए देखा जाए तो इसका बहुत फायदा हैं । सबसे पहिले कि आबादी नहीं बढेगी। जितना भी बुआई कीजिए फसल उतना ही रहेंगा । दुसरा फायदा ये कि शादी बियाह का खर्च कम हो जाएगा ।
लेकिन इसकों अपनाने से पहिले ये सोचना होगा कि मॉ बाप के सपनें को क्या हम ऐसे ही अपनें स्वार्थ के चलते कुचलतें रहेंगें । क्या हम प्रकृति से ऐसे ही पंगा लेते रहेंगें और हम सबकी प्यारी दुलारी धरती को सर्वनाश के तरफ ले जाएगें । अगर हमारा जवाब हैं तो फिर तो दीवाल में अपना माथा अपनें से मारनें वाली बात हो गयी । अगर जवाब नहीं हैं तो फिर हमें इसकें खिलाफ एकजुट होना चाहिए और इसका मुकाबला हमलावर तरीके से करना चाहिए ।
अभी मेरे दलान से बस इतना हीं क्योकिं सुबह के साढ़ें तीन बज गए हैं और मुझे काम करना हैं ।

Thursday, July 9, 2009

मैं और मेरी तन्हाई...

मैं और मेरी तन्हाई .... सिलसिला के इस सिलसिला चला वो आज भी थमनें का नाम नहीं ले रहा हैं ... जी हॉ आज भी लड़के अपनें प्रति सहानुभूति वोट लेनें के इस डायलाग से बे इन्तहा प्यार करते हैं ... मुआफ कीजिएगा आप भले ही गलत मान रहे हो और मेरी बात पर विश्वास नही कर रहें हो ... लेकिन हम हरामखोरों को ये भली भागिं आता हैं ... गॉव का चमरटोली हो या फिर बभनटोली ये संवाद दोनों टोली में कोई भेदभाव नही करता हैं .. और ना हीं ईस टोली में रहनें वाले लोग ... मेरे एक मित्र जो मेरे इस कॉलर ट्यून लगाने पर मुझनें बड़े चिढ़ते हैं ,उन्होनें मुझे रात के दो बजे फोन किया । आम आदमी को भलें ही आज दो बजे फोन करे तो आप गालियों से सुसज्जित होगें । लेकिन मेरे साथ ऐसा नहीं । अरे भाई मैं निशाचर हू यानी रात में जगनें वाला । क्योकि गाहे बगाहें ही सही मैं एक ऐसे पेशे में हूं जिसमें रहनें वालों को दल्ला के नाम से जाना जाता हैं । अरे भाई लगता हैं कि आप फिर गलत समझ गयें । आखिर समझे भी क्यों ही हमारे देश में जो चलन हैं उसमें लोग गतल चीज पहिलें सोचतें हैं और नीक चीज बाद में । बेशी क्या हूं पर ये सच नहीं तो झूठ भी नहीं हैं । हॉ तो हम बात कर रहें थे मैं और मेरी तन्हाई का । वैसें ये तन्हाई मेरी ही नहीं आपकी या यू कहें कि किसी कि भी हो सकती हैं । हॉ तो उस बंधु का आखिरकार फोन आया । और दिनों की तरह वे मुझे गाली दे कर नहीं बल्कि बहुत प्यार से बात किया । मेरी कुछ समझ मैं नहीं आया । क्योकि शुरू से ही मोटी बुद्धि हॉ भाई । इतनी जल्दिए थोडीयें ना आयेगा । बरहाल मुझे उस सज्जन नें मेरे कॉलर ट्यून पर पहली बार तारीफ की । और बोला भाई मुझे भी ये कॉलर लगावा दो । अचानक आई बदलाव से मैं सहम गया । और बदलाव वो भी रात के दो बजे । हम बिल्किल अक्का बक्का रह गए । पर कर भी क्या सकतें थे । खैर मैनें उनकी परेशानी को सॉल्व कर दिया । पर आज तक ये बात मेरे समझ नहीं आई आखिर वो तन्हाई क्या थी और क्यों थी ।

Wednesday, July 8, 2009

I AT 05:30 IN OFFICE

welcome to all of you
you all have must be amazed as well as surprised at me because I am again writing my second blog in a day after a long time. I would seek sorry for two things One for writing blog after a long time and secondly for writing such a torcherous blog again to give you headache. We people in media are well equiped with the necessary tools to fight with the time.Thereby challenging the the time system by working 24*7.Any how I am in night and hence sitting in the office on my desk and sorting out stotries.Meanwhile also writing article for you.

RAIL BUDGET 2009-10

HI, EVERY BODY RAIL BUDGET JINN FOR 2009-10 HAS BEEN out.Not only Rail budget but Aam Budget Pitara has also been opened.But what is there for aam admi is known by aam admi only.Becoz after all they have voted the UPA back to the power.
As far as my view is concerned this budget is more rural centric. It's a 50-50 cheers and tears budget. Generally it is seen that One's Cheers is others Tear's.Now look at the facts of Budget.
costilier :--- mahangai maar gai (par kya karein)
Cosmetic surgery will be costilier .which is generally used by our higher class society.
Then is Gold which will be costiler now .This is really a matter of conecrn becaz it is used by both rural and urban people.
Although income tax limit has been increased but not helpful too much as it has been increased only by 10k only. So again FM has given some of hope but that too diminished. As far as overall budget is concerned it can be termed as Ut ke muh main jeera ka phoren . Although surcharge has been reduced and exempted but my dear that too not upto the mark.
Now we talk about the FBT ( Fringe Benefit Tax ) as it has been scraped.It's good both for the employee and the employers.
I have seen that in plans have been made in accordance with keeping view of the corporates . Although this doesn't give the little bit sigh for stock markets as it felt badly on the budget day. But they after the day it catch its speed. But that too not upto the levpel.
In the last but not the least SERVICE TAX has been levied on the doctors and lawyers. Its results are being seen on the court proceedings as it is well inetrrupted in some parts of the country .